सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, May 19, 2020

एक मेरा अकेलापन है

एक लंबा सुकून है, थकान की चादर ओढ़े। एक थकान है, चिंता भरी करवटें बदलता।एक गहरी चिंता है, चार दिवारी में खुद को छिपाने की कोशिशों में जुटा।एक चार दिवारी है मुझको अपने बाहों में समेटता हुआ।एक मैं हूं, खुद में अकेला। एक मेरा अकेलापन है। जो व्यस्त है इन बेमतलब के ढर्रो में।

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