सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, May 19, 2020

लिखकर मिटाता हूं

मैं हर बार कुछ लिखता हूं तुम्हारे लिए।और लिखकर मिटाता हूं।कुछ लिखा तुमने पढ़ा है।कुछ मेरे पास अब भी लिखा पड़ा है।मेरे पास का लिखा मैं बार-बार मिटाता हूं।उसे और अच्छा लिखने कि कोशिश में हर बार हार जाता हूं। पर लिखा था उसे पहले भी तुम्हारे गर्दन पर अपनी सांसों से कभी।तुम्हारी बालों में वो अब भी उलझा होगा कहीं।कभी संवरते हुए अपने बालों से उन शब्दों को चुन लेना। वो मिल जाएंगे तुम्हें हथेलियों में वहीं।फिर मैं अपना सारा लिखा मिटाकर, तुमसे मिलने आऊंगा वहीं।जहां मेरा कुछ लिखा तुमने पढ़ा हर बार सही।एक बार फिर तुम्हारी हथेलियों से शब्दों को चुन लिख जाऊंगा कहीं।

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