एक चेहरा जिसमें प्यार है और गुस्सा भी।
सच कहूं तो प्यार भी मुझसे गुस्सा भी मुझसे।
बातें करती है, हंसती है और कभी-कभी रूठ भी जाती है।
अपनाती है, ठुकराती है अपनी बातों में उलझाती है।
डरती है, डराती है फिर चुप सी हो जाती है और गुस्से में कहती है मुझे तुम नहीं तुम्हारा लिखना पसंद है।
वो कहती है जो तुम लिखते हो वो सच है,पर इस से मैं डरती हूं। देखना एक दिन तुम अकेले रह जाओगे मैं दावे से ये कहती हूं।
तुम्हारा लिखना पसंद है तुम नहीं क्योंकि तुम कहते नहीं बस लिखते हो। लिखा तो सब पढ़ जाते हैं पर उनका क्या जिन्हें समझ नहीं?
मैं कहता हूं तु समझ हर किसी को संतृप्त अवस्था में तभी ला सकती है जब वह तैयार हो।
कैसी तैयारी?
स्वयं को समझने की तैयारी। सारी क्रूरता का आलिंगन कर प्रेम को अभिव्यक्त करने की तैयारी। स्वयं में हीं सबको अपनाने का निर्माण।
क्या नाराजगी कैसा द्वेष?
कहीं उपर का प्रेम कहीं भीतर का चिढ़। मैं किस-किस को समझाऊंगा? ना जाने किसके कितने भेष?
इसलिए बस अपने दिल को समझाता हूं थोड़ा लिख जाता हूं।
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