एक चेहरा जिसमें प्यार है और गुस्सा भी। सच कहूं तो प्यार भी मुझसे गुस्सा भी मुझसे। बातें करती है, हंसती है और कभी-कभी रूठ भी जाती है। अपनाती है, ठुकराती है अपनी बातों में उलझाती है। डरती है, डराती है फिर चुप सी हो जाती है और गुस्से में कहती है मुझे तुम नहीं तुम्हारा लिखना पसंद है। वो कहती है जो तुम लिखते हो वो सच है,पर इस से मैं डरती हूं। देखना एक दिन तुम अकेले रह जाओगे मैं दावे से ये कहती हूं। तुम्हारा लिखना पसंद है तुम नहीं क्योंकि तुम कहते नहीं बस लिखते हो। लिखा तो सब पढ़ जाते हैं पर उनका क्या जिन्हें समझ नहीं? मैं कहता हूं तु समझ यहीं ये समझ की समझदारी है। अब खुद से हीं, खुद में हीं सबको अपनाने की बारी है। क्या नाराजगी कैसा द्वेष? कहीं उपर का प्रेम कहीं भीतर का द्वेष। मैं किस-किस को समझाऊंगा? ना जाने किसके कितने भेष? इसलिए बस अपने दिल को समझाता हूं थोड़ा लिख जाता हूं। #friday_special
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Friday, June 28, 2019
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