हर सुबह जब नींद से जीती हुई लड़ाई से आगे बढ़ काम के लिए निकलता हूं। सिढ़ीयो पर बैठी बिल्ली मेरे कदम के थाप से भाग खड़ी होती है। बिल्ली भागती नहीं दौड़ती है। दौड़ती है वापस आने के लिए। मेरे जाने के बाद बिल्ली वापस आती है। क्यों आती है इस बारे में कभी विचार नहीं किया और क्या करती है? इसका ठीक-ठीक पता नहीं। ठीक-ठीक पता न होने का कारण मेरी इच्छा का ना होना नहीं,समय की व्यस्तता है। बिल्ली को मैंने जब भी देखा है सुबह के समय हीं देखा है। एक हीं रूप में देखा है, रूप कहने में सुंदरता को अनमने ढंग से पेश करने की बू आती है। मैंने बिल्ली को भागते हुए देखा है। नहीं दौड़ते हुए देखा है। भागने वाला कभी वापस नहीं आता। बिल्ली हर शाम वापस आती है। वापस आते मैंने कभी नहीं देखा। मेरे साथ उसका न आना मूल कारण है। या तो वह मुझसे पहले आती होगी या बाद में। मेरे साथ मेरे दोस्त आते हैं। बिल्ली मेरी दोस्त नहीं है। वह बिल्ली है या बिल्ला यह भी समझ पाना मेरे लिए मुश्किल है। सभी ने उसे बिल्ली कहा मैंने भी मान लिया। सच कहूं तो मैंने लोगों कि बात नहीं मानी बस जो सुना वो चुन लिया। बचपन की यादों में बिल्ला का स्थान कभी नहीं रहा। बिल्ली और बिल्ला में बड़ों को भेद करते नहीं देखा। उनके रोने की आवाज आती तो बिल्ली रो रही है सभी कहते। वो सामने दिख जाती तो बिल्ल-बिल्ल और बिल्ली भाग जाती। मां को मैंने यह आवाज लगाते सबसे ज्यादा सुना है। बिल्ली अक्सर दूध पीकर भाग जाया करती थी। वो बिल्ली थी या बिल्ला इतना सोचने के समयांतर में सारा दूध समाप्त हो जाता था। या शायद बिल्ल-बिल्ल कहने पर बिल्ली और बिल्ला दोनों भाग जाते हों। बिल्ली से बचाव के लिए दूध को सिकहर पर रखा जाने लगा। फिर दूध सुरक्षित हो जाता था लेकिन सिकहर के टूटने का डर लगा रहता। कभी-कभी बिल्ली सिकहर को नोचने लगती। मां ने फिर दूध को कमरे में बंद करना आरंभ किया जहां बिल्ली ना पहुंच सके। बिल्ली दरवाजे से वापस लौट जाती। कमरे में खिड़की नहीं था। जहां मैं रहता हूं वहां खिड़की है। लेकिन मां साथ नहीं रहती। इसलिए मैं खिड़की बंद रखता हूं और दरवाजा खुला। आश्चर्य यह है कि दरवाजा खुला रखने पर भी बिल्ली नहीं आती। चिड़िया आती है लेकिन छुट्टी वाले दिन नहीं आती। शायद मनुष्यों की तरह सभी अकेला रहना चाहते हैं। या एकांत के प्रेमी हैं। मैं अकेला रहता हूं लेकिन एकांत नहीं। कमरे में एकांत रहना झूठ सा लगता है। अकेले में एकांत होना धोखा देने जैसा है। भीड़ में एकांत होना परीक्षा। मैं हर रोज ऐसी परीक्षा देता हूं और अनुतिर्ण होकर अकेला कमरे में थका हुआ सो जाता हूं। सोते वक्त मैं अकेला रहता हूं। बिल्ली भी साथ नहीं होती। घर पर बिल्ली मेरे पास आती थी। मां बिल्ल-बिल्ल की आवाज लगाती और मैं उसे पास बुलाता। वो हम दोनों को ताकती फिर वहीं चौकी के निचे रखे मिट्टी के चुल्हे में बैठ जाती। मैं रोटी के टुकड़े फेंकता वो खाती फिर भाग जाती। इस बार वह बिल्ल-बिल्ल सुनकर नहीं भागी थी। प्रसन्नता की लहर में उड़ी थी। कुछ समय बाद उसके साथ और भी बिल्लियां थीं। शायद उसने अपने साथियों से कहा होगा कि वहां भोजन मिल रहा है। कैसे कहा होगा यह मुझे नहीं पता। पर लोगों को कहते सुना है सभी प्रजातियों की अपनी अलग भाषा होती है। या उसने म्याऊं-म्याऊं की भाषा में सबको सूचना दी होगी। मैंने बिल्ली को म्याऊं के सिवा कुछ बोलते हुए नहीं सुना। चुप रहते सुना है। मेरे मित्र ने एक बार कहा था चुप रहते सुना नहीं जता देखा जाता है। लेकिन मेरी आंखें हमेशा थकी हुई रहती हैं इसलिए मैं मौन को सुनता हूं और बोले हुए को महसूस करता हूं। शायद कान की जगह दिल से सुनना हीं इसका कारण है। बिल्लियों का झुंड देख मां गुस्सा थी। मां बिना ज्यादा कुछ बोले हीं कमरे की ओर भागी। मां को हर चिज़ की चिंता लगी रहती थी। अब मां ज्यादा चिंता नहीं करती। चिंता का बटवारा हो गया है। मैं हमेशा सोचता था मां का विवाह पिताजी से नहीं घर से हुआ होगा। पिताजी ने मात्र सात फेरे साथ लिए होंगे। जिम्मेदारीयों के गहने से मां को सजाया गया होगा और रिश्तों कि चादर से ढ़क दिया गया होगा। बाबा ने नाना से कहा होगा मुझे घर के लिए बहु चाहिए। नाना से बाबा से कहा होगा मुझे समाज के लिए दामाद। औरतों ने बहुत लंबा समय घर को दिया और आदमी ने समाज को। मां ने सबसे ज्यादा समय घर को दिया था और अब भी जारी है। उसी समय में से समय निकालकर मां बिल्ली भगाती थी। मैं बिल्ली नहीं भगाता। बिल्ली मुझे देखकर दौड़ जाता है। उसके दौड़ते हीं बिल्ली मेरा रास्ता काट देती है। यह बात मैंने किसी को नहीं बताई। रास्ते को भी नहीं। कटता कौन है यह भी ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। सड़क का खून बहते मैंने कभी नहीं देखा। बिल्ली का भी नहीं। क्योंकि बिल्ली रास्ता काटती है इस वजह से उसका रक्त ना दिखना स्वाभाविक है। सड़क निर्जिव है उसके कट जाने की बात समझ से परे। लेकिन बिल्ली रास्ता काट दी यह आम बोलचाल की भाषा में शामिल है। मैंने किसी को यह कहते नहीं सुना कि मैंने जंगल काट दिया। मैंने पौधों को जला दिया। जंगल तो जानवरों का घर था। खून तो जंगल के कटने पर भी नहीं निकलता फिर सड़क?
लेकिन पौधों में जान होती है ऐसा स्कूल में बताया था। मिट्टी में होती है या नहीं ठीक-ठीक कह पाना मुश्किल है। लेकिन कटते दोनों हैं। पहाड़ के कटने से गिट्टी बनते देखा है। गांव वाली पहाड़ से सिमेंट बनते देखा है। मिट्टी खोदने से खनिज निकलता है। कटने से बस खाली जगह मिलती है। उसी खाली जगह में सड़क बनती है। सड़क बनते मैंने देखा है, टूटते भी देखा है लेकिन बिल्ली के द्वारा कटते नहीं देखा। या मैंने आदमी का रास्ता काट दिया यह कहते हुए मैंने बिल्ली को कभी नहीं सुना। म्याऊं-म्याऊं कहते सुना लेकिन समझ नहीं पाया। आदमी को मैंने सड़क कटने के ऊपर चर्चा करते सुना है। सामने रास्ते पर थूककर या ऊंगली से सांकेतिक क्रास बनाकर आगे बढ़ते देखा है। मैंने नहीं थूकता। क्यों कि बिल्ली जिस रास्ते को काटती है वहां सीढियां हैं। जगह-जगह थूकना गलत बात होती है। फिर सफाई करना और भी मुश्किल। और क्रास करना बिल्ली की बराबरी करने जैसा। मैं अनदेखा कर बाहर निकल जाता हूं। लोगों को कहते सुना है बिल्ली के रास्ता काटने से बुरा होता है। मेरे साथ कुछ बुरा नहीं हुआ। सब समान होता है। मैंने लोगों को यह कहते नहीं सुना कि जंगल काटने से बुरा होता है। शायद इसकी चर्चा होने चाहिए और होती अगर जानवर हमसे आकर कहते देखो तुमने मेरा घर काट दिया। लेकिन सभी जानकर की भाषा समझना असंभव है। फिर हम अपने हक से उन्हें मारकर भगा देते हैं। मैं चिड़िया की भाषा अच्छे से समझता हूं। इसलिए छत पर पानी और दाने रख देता हूं। घर में घोंसले भी बने रहते हैं। मैं बिल्ली की भाषा नहीं समझ पाता। मां समझती है लेकिन अपसगुन मान उन्हें भगा देती है। कहती है बिल्ली का रोना अशुभ होता है। मैं शुभ-अशुभ में विश्वास नहीं करता। यथार्थ में करता हूं। और यथार्थ यह है कि जंगल हमनें काटे हैं। उन्हें जलाया हमारी आवश्यकताओं ने है। और यह शुभ नहीं।
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