सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, January 15, 2022

कटी पतंग

कटी पतंग।
कटी उंगलियां।
कटी आशाएं।
कटी उम्मीदें।
कटे रिश्ते।
कटे हम।
कटे तुम।
इतना सारा कटने के बाद जो कुछ थोड़ा बचा वो‌ हमारे हाथ में लकीरों की शक्ल लिए हमें चिढ़ा रही है। 
हर रेखाएं नित्य प्रति एक-दूसरे को काट रही हैं।
कुछ कटने से जो बचा रह जाएगा,वो हमें बूढ़ा कर जाएगा। 
फिर हम काट देंगे एक उदास जिंदगी। 
जो हमें जिनी नहीं थी।
-पीयूष चतुर्वेदी

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