कटी पतंग।
कटी उंगलियां।
कटी आशाएं।
कटी उम्मीदें।
कटे रिश्ते।
कटे हम।
कटे तुम।
इतना सारा कटने के बाद जो कुछ थोड़ा बचा वो हमारे हाथ में लकीरों की शक्ल लिए हमें चिढ़ा रही है। 
हर रेखाएं नित्य प्रति एक-दूसरे को काट रही हैं।
कुछ कटने से जो बचा रह जाएगा,वो हमें बूढ़ा कर जाएगा। 
फिर हम काट देंगे एक उदास जिंदगी। 
जो हमें जिनी नहीं थी।
-पीयूष चतुर्वेदी
No comments:
Post a Comment