सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, January 30, 2022

कर पृष्ठ

हमारे हथेली पर हमारी कहानी लिखी होती है। जिसे पंडित पढ़ने की कोशिश करता है।‌‌
हम पूरी उम्र उसे समझने की कोशिश करते हैं।
पांडित्य अंत में हार जाता है।
हम थक जाते हैं।
फिर रेखाएं झूर्रियों का रूप ले कर पृष्ठ की ओर भागती हैं फिर पूरे देंह पर पसर जाती हैं। 
और हम बूढ़े हो जाते हैं। 
हमारा बूढ़ा होना हमारी कहानी कहता है। 
-पीयूष चतुर्वेदी

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