उन झूर्रियों में कोई रिक्तता नहीं होती।
मुक्त करने और मुक्त होने का भाव होता है।
झूर्रियों की चपत्तियों को देखते हुए मैं अपने स्वार्थीपन को सघनता से महसूस कर रहा हूं।
सारा कुछ हमें कभी नहीं प्राप्त नहीं होता। लेकिन जो होता है वह भी अपने साथ एक अलगाव लिए चलता रहता है।
10 वर्षों तक मां को मां ना कह पाने का दुख आज के खालीपन के आगे बौना नजर आ रहा है।
दीवारों का सूना पर और चटाई की रिक्तता मानों जैसे मेरे भाव को लील रही है।
मां का सबसे गहरा रिश्ता त्याग से रहा है फिर पिताजी से। अब जो कुछ भी जीवन में छिटका हुआ है वो मात्र संतोष है।
#जय_मदर_मेरी
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