सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, May 22, 2025

जीवन में जो कुछ भी छिटका हुआ है वो मात्र संतोष है

चमड़ी हड्डियों से दूर भागती है और झूर्रियों का रूप लेते हुए देह पर पसरने लगती है। 
उन झूर्रियों में कोई रिक्तता नहीं होती। 
मुक्त करने और मुक्त होने का भाव होता है। 
झूर्रियों की चपत्तियों को देखते हुए मैं अपने स्वार्थीपन को सघनता से महसूस कर रहा हूं। 
सारा कुछ हमें कभी नहीं प्राप्त नहीं होता।‌ लेकिन जो होता है वह भी अपने साथ एक अलगाव लिए चलता रहता है। 

10 वर्षों तक मां को मां ना कह पाने का दुख आज के खालीपन के आगे बौना नजर आ रहा है। 
दीवारों का सूना पर और चटाई की रिक्तता मानों जैसे मेरे भाव को लील रही है। 

मां का सबसे गहरा रिश्ता त्याग से रहा है फिर पिताजी से। अब जो कुछ भी जीवन में छिटका हुआ है वो मात्र संतोष है।

#जय_मदर_मेरी

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