सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, May 17, 2020

बिल्ली

घर के अंदर से कुछ गिरने की आवाज आई मां ने आंगन में खुद को काम में व्यस्त रखते हुए आवाज लगाई बिल्ल.... बिल्ल भीतर से बिल्ली खिड़की से डाकती हुई बाहर निकली। मैं यह सब छत से देख रहा था।उसे देख मन से आवाज उठी कि हमने ना जाने इसी तरह से कितने नियम बनाए होंगे? हर जानवर के लिए एक अलग शब्द। और जानवर भी उसका अनुसरण करता आदि बन चुका है। क्या हम इंसान सिर्फ सीखाते आए हैं? अपनी सुविधा के अनुसार व्यवस्था बनाते आए हैं? बस वहीं करते गए जो हमें ठीक लगा। लगे हाथ इस कृत्य से स्वयं को जानकार समझ बैठे। और उस झूठी जानकारी की ओश को पूर्ण ज्ञान समझ हमने सिखना बंद कर दिया? बिल्ली के पूर्वजों ने उस बिल्ल... बिल्ल को अब तक संभाले रखा है और आगे भी जारी रहेगा। और हम?? हम अागे भी बिल्ल... बिल्ल... करके स्वयं को जानकार बताते रहेंगे। जानवर ज्ञानी होते जाएंगे और हम जानवर। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

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