वर्तमान में नदियां स्वच्छ हैं। रंगहीन, सूरज की पड़ती किरणें उसकी सुन्दरता को किनारे पड़े पत्थरों तक बिखेर रही है। किनारे पर छोटी घांसो में काई नहीं जमी। मछलीयां जल में कृडा़ करती साफ नजर आ रही हैं।क्या नदियां मूलतः हमें हमारे पापों से मुक्ति दिलाने का कार्य करती आई हैं? क्या हम घरों में कैद वापस पाप की गठरी तैयार कर रहे हैं? क्या सबकुछ ठीक होते हीं नदी वापस हमारे पापों की गठरी धोते मैली हो जाएगी?
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Thursday, May 14, 2020
वर्तमान में नदियां स्वच्छ हैं
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