मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Thursday, May 14, 2020
राजा बनने के लिए किसी राज्य या बहुसंख्यक प्रजा की आवश्यकता नहीं। अपने मन राजा बनना हीं काफी है। खुद पर अपना प्रबल अधिकार हीं काफी है। अवस्था,स्थिती बल, प्रताप इनका इंतजार करना बेकार है। जीवन हमारा, भोग हमारा, फैसला हमारा, तरीका हमारा। और हम अपने जीवन के राजा।-पीयूष चतुर्वेदीHttps://itspc1.blogspot.com
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
No comments:
Post a Comment