सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, May 11, 2020

जीवन

हम सभी किसी नाटक के किरदार हैं। उस नाटक का शिर्षक जीवन है। सभी इस जीवन रूपी नाटक में अपना विशेष एकल किरदार लिए बैठें हैं। उसे इमानदारी पूर्वक निभाने की जगह हम दूसरे किरदार पर अपनी नजरें गड़ाए बैठे हैं। अपना किरदार निष्ठा पूर्वक निभाने की जगह दूसरे किरदार को अपनाने, मिटाने, भूल जाने, अंतर और बराबरी करने की ज़िद है। इसी ज़िद में हम खुद को खोते जा रहे हैं। हमारी विशेषता प्रभावित हो रही है। जरूरत है स्वयं के प्रति, अपने किरदार के प्रति ईमानदार रहने की।                                                      -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

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