सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, June 12, 2025

असफलता और लालच के क्षणों में उनकी आलोचना में भी शामिल रहा हूं- पीयूष चतुर्वेदी



यह मेरे लिए दिसंबर २०१५ के प्रथम सप्ताह को जवान होते हुए देखना है।
विवाह की लंबी तैयारी ने उन्हें शारीरिक रूप से थोड़ा थका दिया था। लेकिन उनका जोश उनके हर कार्य और फैसले में दिखाई देता था। 
मुझे एक फोन डायरेक्ट्री बाबा ने दी थी जिसमें उत्तर प्रदेश के सभी चुने हुए प्रतिनिधियों के नंबर थे और एक लिस्ट थी मुझे उस लिस्ट की सहायता से फोन डायरेक्ट्री को और छोटा बनाना था। 

मैंने लगभग सारे नेताओं के नाम और नंबर को सार्टलिस्ट कर लिया था। 
बाबा को उन सभी लोगों से व्यक्तिगत वार्ता कर विवाह के लिए आमंत्रित करना था हालांकि उन्हें कार्ड पहले भी भेजे जा चुके थे। उनकी आवाज खारी हो गई थी। गर्म पानी और नमक के गरारे ने गले की गरारी में फंसे रूखेपन को आराम नहीं दिया था। वो उसी फंसती और घरघराती आवाज में सभी को आमंत्रित कर रहे थे।

उनमें एक नाम राजा भैया का भी था। 
अन्य दलों के और नेताओं का भी। 

मैं राजनीति को कल्याणकारी योजनाओं की सबसे कमजोर कड़ी मानता हूं। 
और वर्तमान समय में यह और भी मैला हो गया है।

बाबा के सम्मान और असम्मान को मैंने बचपन से देखा है। असफलता और लालच के क्षणों में उनकी आलोचना में भी शामिल रहा हूं। 
अब भी मिल रहे सम्मान में कितना स्वच्छ और धुला हुआ सम्मान उन्हें मिलता है मैं उस तक नहीं पहुंच पाता। 
लेकिन यह सारा कुछ जो दिख रहा होता है.. जो बिल्कुल हीं औपचारिक है। उसके पिछे की दुर्गंध हम नहीं सूंघ सकते। उसकी सुगंध को महसूस करना मेरे परिधी में नहीं है। 
लेकिन उस स्थिति को जीने के लिए एक यात्रा की आवश्यकता होती है। 
लंबी और संघर्षशील यात्रा। कुछ फैसले में सेवा और त्याग को ऊपर रखने से ऐसी घटनाओं के हम साक्षी बनते हैं। 
व्यवहार की स्थिरता में उपजे संयम से चारित्रिक उत्थान को देखा जा सकता है।

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