सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Tuesday, March 2, 2021

"नारी"

घर के कोने-कोने को अपनी भावनाओं से सजाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
अपने आंचल तले सबकी खुशियों को सींचती,थकान मिटाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
अपनी खुशियों के आगे परिवार की खुशियों में शामिल हो जाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
अपने सपनों के साथ समझौता कर, बच्चों के सपनों से अपनी पहचान बनाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
समंदर सी गहराई लिए अपनों को हर रुप में अपनाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
मैं ज़्यादा पढ़ी नहीं, समाज मुझे जानता नहीं, पर मर्यादा में रहकर मैं बच्चों को संस्कारी बनाती हूं। 
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
मैं पैसे नहीं कमाती, बाहर काम पर नहीं जाती। घर के काम कर वैभवशाली परिवार कमाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
मेरा खुद का कोई सर्वाथ नहीं। मैं घूंघट में हूं, आजाद हूं। एक अच्छी मां,बहु, दुलारी बेटी,उत्तम पत्नी कहलाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
मैंने एक मकान को घर बनाया है। उस घर में सभ्य परिवार पाया है। उस परिवार ने मुझे अपनाया है। मैं उस परिवार की रानी कहलाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
मेरे खुद के त्याग से मैं अपने जीवन में कितना कुछ पातीं हूं। यह कोई लिखता हीं नहीं। आज मैं तुम्हें बताती हूं। धन,वैभव, ऐश्वर्य सबको कहीं पिछे छोड़ मैं एक नया संसार बनाती हूं।
मैं भी सशक्त नारी कहलाती हूं।
-पीयूष चतुर्वेदी

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