सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, October 9, 2022

गांव से घर की दुर्गंध उठ रही थी और लगभग हर घर में अतीत की चिता जल रही थी

मैं जब भी शहर की जिंदगी से ऊब जाता हूं। भीड़ में स्वयं को खोता हुआ देखता हूं। हर रोज के समान कार्य से मन और मस्तिष्क दूर होने लगते हैं मैं गांव चला जाता हूं। हर तीसरा महीना मुझे शहर के भाग दौड़ में पूरी तरह थका देता है। मैं उस थकान को गांव की यात्रा के दौरान रास्ते में बिखेरता गांव पहुंच जाता हूं। लेकिन इस बार मैंने गांव की थकान को शहर तक अपने साथ लेकर आया हूं। प्रयास था उसे रास्ते में कहीं फेंक देने की। एक बार तो इच्छा हुई कि गंगा जी में सारी थकान बहा दूं लेकिन मेरी हिम्मत मेरे प्रयास की भांति डरा हुआ मुझसे चिपका रहा। फिर मैंने प्रयास करना छोड़ दिया और हिम्मत स्वयं हार गई। मैं हारा या जीता इसका ज़बाब न शहर के पास है ना गांव के पास‌। ना हीं मेरे पास है। मेरे पास तो सिर्फ मेरे प्रश्न हैं जो शहर से नहीं गांव से हैं। इस बार गांव की खुशबूदार हवा में घर की बदबू आ रही थी। पत्तों की सांय-सांय और नदी का स्वर दोनों बेचैन नजर आ रहे थे। पहाड़ बिल्कुल शांत थे। शोर कि प्रतिध्वनि भी शांत थी। गांव के घर हो जाने जैसा प्रतित हो रहा था। पिछली बार सड़क पर बढ़ते वाहनों को देख ऐसा नजर आ रहा था जैसे गांव शहर होने की ओर भाग रहा है। गांव के लोग वहीं ठहरे हुए हैं और शहर उनकी ओर भाग रहा है। शहरी लोग भाग रहे हैं लेकिन इस बार शहर और गांव के बीच घर अपनी उपस्थिति दर्ज किए बैठा था। 
गांव से घर की दुर्गंध उठ रही थी और लगभग हर घर में अतीत की चिता जल रही थी। सभी अपने कहानी के नायक बनें अपनी दक्षता को दर्शा रहे थे। भारी संख्या में लोग चिता को घेरे अपनी रोटी सेंक रहे थे कुछ उससे उठती लौ में अपने वर्तमान का अंधकार समाप्त करने में जुटे थे। वहीं कुछ चिता के धुंए को अपना जीवन मान गहरी सांसें ले रहे थे। वर्तमान के दरवाजे को अनदेखा कर सभी अतीत की खिड़की में जिंदगी ढूंढ रहे थे। मैं अतीत में अफसोस का डस्टर लिए बैठा था।
वो सारा गलत मिटाने के लिए जिसकी वर्तमान में जरूरत नहीं थी। वो सब भूल जाने के लिए जहां से अहंकार की उत्पत्ति होती है। लेकिन मैं भूल गया कि अतीत की जड़ें बहुत मजबूत होती हैं। किसी बड़े पेड़ के जड़ जैसी। जो कटने के बाद भी धरती में गड़ी रहती हैं। अतीत के जड़ों को काटते-काटते मैं स्वयं को बड़ा महसूस करने लगा‌। खुद में अजीब सा बदलाव महसूस किया। जैसे कोई गणित का मास्टर करता है। दिल की जगह दिमाग पूरे देंह पर हावी हो गया। बहुत दिनों बाद मैंने स्वयं को क्रोध के आसपास भटकते देखा। मैं सभी के पुराने दिनों से बाहर भागने के लिए अपने अतीत में प्रवेश करना चाहता था। मैंने अपनी पुरानी डायरी का सहारा लिया।डायरी में रखी पिताजी के बचपन की तस्वीर ने मुझे उस स्थिति से दूर फेंक दिया। 
कुछ और भी थे जो अतीत की चिता को बुझाकर वर्तमान के बाइस्कोप में गांव को घर की दुर्गंध से मुक्त करना चाह रहे थे। वहीं कुछ ने अपने दौर में किया भी था। 
रायबरेली से गिरीश बाबा आए हुए थे उन्हें गांव से घर की दुर्गंध महसूस नहीं हो रही थी उनका आना अति कम होता है शायद यह कारण हो सकता है। उनके अतीत की दुनिया भी हम सभी से अलग थी। प्रेम और अपनत्व की सजीवता उनके होंठों को छूकर शब्दों के रूप में सामने बैठे सभी के इंद्रियों को आईना दिखा रही थी। उनका कांपता शरीर, थरथराते होंठ और सामने बैठे अपने वर्तमान को भूल उनके अतीत के दर्शन करते लोग उनकी प्रसिद्धी को अलंकृत कर रहे थे। 
सभी के पास उनसे जुड़ी मिठी यादें थी जिसने उनकी उपस्थिति को और भी प्रगाढ़ कर दिया था। बाबा जी के पास ढेरों कहानियां जो सभी सुनना चाहते थे। मैं इसी अतीत के सहारे गांव में स्वयं को कुछ दिन रोक पाया। बाबा के गांव छोड़ते हीं घर की महक और भी बदबूदार और असहनीय हो गई। मानों जैसे स्वांस ले पाना भी मुश्किल हो गया हो।
गांव की हवा में दम घुटने से पहले मैं शहर भाग आया। अगली दफा गांव की हवा कैसी होगी या वहां सांस ले पाना कितना संघर्षपूर्ण होगा इसका ज़बाब किसी के भी पास नहीं। क्योंकि ज़बाब वर्तमान में होता है। अतीत में नहीं। 
अतीत में यादें और लड़ाइयां होती हैं। वर्तमान समय गांव में अतीत की लड़ाइयां है। वो लड़ाई जिससे ना अतीत खुश था ना हीं उससे वर्तमान को प्रसन्नता मिलती है। चंद मुठ्ठी भर लोग उसमें अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं और कुछ उसकी चर्चा में अपने स्वाभिमान का दंभ भर लेते हैं। वर्तमान में जीने और चलने में सभी हिचकिचाते हुए उसे माया कि यात्रा का नाम देकर अतीत की गहरी सांस लेते हैं और वर्तमान में उनका दम घुटता है।

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