सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
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Sunday, April 24, 2022

पिता-पुत्र के कंधे समय के साथ अपना शक्ति परिवर्तन करते हैं।

अबोध और बोध होने में कंधे मात्र का भेद होता है। आरंभ में शिशु अबोध हैं। माता-पिता बोध। नव जीवन का आरंभ ऐसा हीं होता है। जीवन के मध्यांतर में बोध और अबोध दोनों साथ चलने से कतराते हैं। और जीवन के अंत में बोध अबोध हो जाता है और अबोध बोध। पिता-पुत्र के कंधे समय के साथ अपना शक्ति परिवर्तन करते हैं। कंधों के मध्य जीवन यथार्थ को चुनता हुआ आगे बढ़ता जाता है। मां उस यथार्थ को जीवन के हर पड़ाव पर नया रूप देती है। दोनों कंधों में मध्य एक पुल की भांति डटी रहती है। रिश्तों का प्रेम उसे कंठस्थ होता है। उम्र की जर्रजरता भी उसे कमजोर नहीं कर पाती। 
-पीयूष चतुर्वेदी 
#मैं_और_तुम_के_मध्य_हम_की_एक_तस्वीर

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