सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
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Thursday, March 21, 2019

रंग

उसकी नजरों से बचाते हुए,अपनी हाथों में कुछ छुपाते हुए, दिमाग में बहुत से ख्यालों को लाते हुए और दिल में बहुत से अरमानों को जगाते हुए जब मैं उसके सामने पहुँचा तो मानो बस जीवन के सारे रंग आखों में उतर गए और हाथो में जो रंग छुपाया था वो बेरंग से हो गए और उसकी नजरों में मानों इन्द्रधनुष ने अपना स्थान बना लिया हो। दिमाग के सारे ख्याल कहीं दूर सफर पर निकल गए तभी दिल ने मेरे कानों में धीरे से बुदबुदाया फिर जैसे ही पलकों ने खुद को आराम दिया बस एक ही बात याद आई इन रंगो की तलाश में कब से भटक रहा था मैं? पर अब मानों किसी सुनहरे से ख्वाब से मुलाकात हो गई हो जहाँ से सारे रंगों का अंतर मिट जाता है। #होली_की_आप_सभी_को_हार्दिक_शुभकामनायें "रंग की तलाश में नए रंग से मुलाकात" 

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