सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Sunday, April 2, 2023

भविष्य ने जीवन की हत्या कर दी थी


मैं जीवन जी रहा हूं।
क्या मैं सच में जीवन जी रहा हूं? 
या जीवन रेखाओं के पीछे भाग रहा हूं। 
उन रेखाओं के जो किसी और ने खींच दी है। रेखाओं के पीछे तेज कदमों से चलता मैं भविष्य की ओर भाग रहा हूं। जबकि मेरी इच्छा है कि मंथर गति से रेंगता हुआ हाथ में एक लकड़ी लिए किसी पगडंडी पर अपने जीवन की रेखा खींचता हुआ आगे बढूं। फिर वापसी में उन्हें मिटाता हुआ अतीत के झरोखे से घर के अंदर अपने जीवन को देह में चिपकाए कूद जाऊं। और पूरे जीवन को घर में बिखेर दूं। 
पर क्या ऐसा संभव है? जीवन को घर में बिखेर पाना? 
जीवन मेरा दोस्त था। जिसे अतीत में भविष्य ने मेरे गांव में बहने वाली नदी
किनारे लगे ऊंचे पहाड़ से नीचे फेंक दिया था। पानी में छटपटाते जीवन को नदी निगल गई थी। भविष्य ने जीवन की हत्या कर दी थी। तब से मैं जीवन नहीं जी रहा, वर्तमान जी रहा हूं। जो अस्थाई है। मेरे लिखे में भी। मेरे कहे हुए में भी। फिर भी मैं जीवन को कैद करना चाहता हूं। उन दरवाजों को जाती हुई पगडंडी पर रेंगता हुआ जिससे होते हुए नदी की रेत वहां तक लाई गई थी। जिससे लोगों ने अपने घर सजाकर मजबूत मकान बनाया है। कभी-कभी लगता है जीवन इन मकानों में रहने लगा है।

पुराने हो चुके खंडहर जो कभी घर हुआ करता था। वहां सभी अपने कहे जाने वालों के घर थे। उसे मैंने कभी नहीं देखा। बड़े कहते हैं उसमें जीवन रहता था। मुझे अभी भी खंडहर के सामने जिंदा कुआं देखकर लगता है जीवन उसके आसपास भटक रहा है। तभी हर मुख्य त्यौहार पर गांव वाले अपने मकान से उस खंडहर किनारे कुएं पर दिया लेकर पहुंचते हैं। शायद उस दिन उसकी हत्या नहीं हुई थी उसने अपनी सांसें रोक रखी थी और हर घर में अपनी सांसें जोड़ता हुआ उन्हें मकान बनाता गया। और नदी सूखती गई। नदी का सूखापन भी वर्तमान नहीं रहता। हर रोज थोड़ा परिवर्तन साफ नजर आता है लेकिन उसका हरापन सिर्फ बाढ़ के दिनों में जीवन को कष्ट देता है। जीवन अपने भूख और भागने को संतुलित नहीं रख पाता। भूख का असंतोष और भाग जाने का डर लिए वह नदी को ऊंचे पहाड़ से देखता है और नुचे हुए पहाड़ को और नोचने के लिए भागता है। 
क्या मेरे लिए वर्तमान को घर में बिखेर पाना संभव है? नहीं मेरे लिए वर्तमान और जीवन दोनों को अपनी देंह से चिपकाकर घर में बिखेर पाना संभव नहीं। भविष्य की निविड़ भूख हर क्षण वर्तमान को निगल रही है।  जहां भविष्य वर्तमान के पीछे नहीं भाग रहा अपितु वर्तमान जो प्रतिपल परिवर्तनशील है भविष्य के पीछे भाग रहा है। उस भविष्य के जिसने जीवन की हत्या की है। या जिसके कृत्य से जीवन ने भविष्य की जगह लेकर वर्तमान को खोखला किया है।

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