शब्दों को सुना जा सकता है।
बोला जा सकता है।
बिना कुछ बोले कुछ सुनने की प्रतीति हो सकती है।
बिना कुछ सुने समझने की।
अचानक से कोई संबंधित स्वप्न देखा जा सकता है जिसने नींद में जीवन को खांसता हुआ देखा हो।
और अगली सुबह तबीयत पूछी जाए।
जहां वात्सल्य से सजी हुई चिंता है जो व्याकुल हो उठता है।
शब्दों की सीमा और टूटती मात्राओं में नाराजगी का संशय मस्तिष्क पर घूमने लगे और फिर नाराज़ होने का कारण पूछ लिया जाए। नहीं-नहीं के ज़बाब में "चुप कर" अच्छे से पता बा।
फिर अपनी गलतियां स्विकार कर ली जाए।
कुछ उपहार हैं जो चुपके से, डांट कर बैग में रख दिए गए हैं। जैसे बड़ी बहन ने प्रेम की चंचल दृष्टि से कसमों की याचना में भेंट किया है।
कुछ किताबें हैं जो जबरन भेज दी गई हैं। पढ़ें-अनपढे़ की द्वंद से अलग कुछ और उपयोगी भेजने की शिकायती स्वर में उन्हें स्थान दिया गया है। कुछ पढ़ा गया है कुछ के पन्ने अब भी अनछुए हैं।
एक नोट बुक है जिसे भेंट करना बाकी है।
प्रबुद्धता को उच्चतम स्थान पर रख अपनी परिपक्वता को संयमित रख चुप रहा जाए फिर सारी पीड़ा बर्फ के ओलों सा टपकने लगे।
चिंता,सुख,विपदा,करूणा,क्रोध,प्रेम के बाद जीवन की परिधि में तैरते हुए अपनी हिस्से की ली हुई गहरी श्वास को मैं पावन मानता हूं।
निश्छल
स्वच्छ।
स्वर,अनुराग,ईमानदारी को सजीव रखना चाहता हूं।
जन्म दिवस कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं फूआ। परमेश्वर आपको प्रसन्न रखें। जीवन के ऊहापोह में आपको शसक्त बनाएं। बिल्कुल स्वतंत्र।
डोर से बहुत दूर तक की सफर के लिए शुभकामनाएं।
मेरे लिए 27 जून हमेशा से "आम दिवस" रहा है। मैंने गांव के लोगों को आम के लिए झूठ बोलते हुए सुना है। अब उन्हें बोलते हुए भी सुनता हूं। झूठ या सच से अलग कहीं दंभ भरती हुई अहंकार से सजी भाषा। यह उसी आम का खास तोहफा है।.
No comments:
Post a Comment