जो दिल में तुम्हारी एक तश्वीर है। जब वह हल्की तिरछी होकर मेरे दिल को चोट पहुंचा गई तो मुझे सोचना पड़ा। तुम्हारी चटपटी यादों ने जो तुम्हारे झूठे पन से मेरे दिल में कड़वाहट दे गई तो मुझे सोचना पड़ा। तुम्हारे प्रति मेरा प्यार,मेरी चिंता,मेरा त्याग जब तुम्हारे लिए नफरत बन गई तो मुझे सोचना पड़ा। तुम्हारी शरारतें, तुम्हारा बचपना जब आज मुझसे बड़ी हो गई तो मुझे सोचना पड़ा। मेरे कंधे पर मेरे हाथों की थपकी और मेरी गोद की कोमलता जब आज तुम्हारे लिए कांटे बन गए तो मुझे सोचना पड़ा। मेरा लगाव, मेरी ममता जब आज तुम्हारे लिए नाटक बन गए तो मुझे सोचना पड़ा। पर तुम भी, कभी शांति मन से यह सोचना कि क्या यह बस सोच तक सिमीत है? तुम्हारी सोच जो मुझसे घृणा कर गई तो मुझे सोचना पड़ा।
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
Thursday, September 19, 2019
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
No comments:
Post a Comment