सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, October 17, 2019

नहीं था


मैं जो आज हूं, नहीं था, कुछ देर पहले। आज गलत हूं या कल को सच था? कहो तो आज को सच मान कर को झूठा कह लूं। पर यह तो खुद को मनाने वाली बात हो गई लेकिन अभी जो मैं हूं ,नहीं था, कुछ देर पहले। जो तुम्हारा प्यार था क्या वह झूठा था? झूठा हीं सही लेकिन तुम्हारे आज से अच्छा था। पर अब नहीं, था तुमसे मुझे भी पर कुछ देर पहले। तुम्हे मुझसे जो भी था,जैसा भी, नाटक हीं सही, पर सही तो था। अभी बैठा हूं अकेले कहीं, तुम्हें सोच रहा ख्यालों में, लेकिन तुम मिले नहीं, पर तुम थे मेरे पास कुछ देर पहले।

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