सड़कों पर शांति है। वाहनों की पी-पों गायब है। इंसान घरों में है उनके साथ उनका डर घरों में कैद है। बाहर सरसरी हवा पेड़ों की कंघी कर रही है। पक्षी अपने घोंसलों से बाहर मुक्त खुले आसमान में बादलों के मध्य नृत्य कर रही है। कूकलाहट, चहचहाहट और खिड़की के बाहर की शांति डर को समाप्त कर रही है। एक मौन है और मैं उस मौन में।
-पीयूष चतुर्वेदी
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