सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, April 2, 2020

जड़

जमीन की ओर झुकती डाली। धरती में जमें इसके जड़ जो खुद को मृदा अपरदन के हर प्रभाव से बचाते हैं पर विचलित नहीं होते। बहु संख्या में गिरते पत्ते। पुराने पत्तों के जाने और नए पत्तों के आने का अनुपात बेहद कम। खोने और पाने में दशकों जितना अंतर साफ नजर आता है। फल की खुशबू। और उस फल का अपना अलग स्वाद। सब इस पेड़ को महान बनाने के लिए काफी है। पेड़ की महानता साफ नजर आती है। हालांकि सारी प्रक्रिया प्राकृतिक है पर हम सब भी प्रकृति से जुड़े हैं। हमें जरूरत है कुछ सिखने की।

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