सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, April 17, 2020

खेतों से होते हुए खलिहान तक फिर कहीं जाकर घर में भर पेट भोजन मिलता है। खेतों से ज्यादा मेहनत किसान खलिहान में करता है। एक खुशी के साथ वो खुशी होती है फसल अच्छी होने की। उस अच्छे में किसान का अच्छा होने जैसा कुछ भी नहीं होता। फसल बोने से काटने तक और काटने से बेचने तक में हर वर्ष एक उम्मीद रहती है पर हर वर्ष निराशा ही हाथ लगती है। उसी निराशा में किसान हर वर्ष निकालता है उन वर्षों में चुनाव का मौसम भी शामिल होता है। बस यहीं एक मौसम होता है जहां किसानों के हक की बात होती है फिर बारिश की तरह यह मौसम भी बेईमान निकलता है। और किसान के हाथ में निराशा। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

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