बाहर गजब की हलचल है। पहले मैं भी इस हलचल का हिस्सा हुआ करता था। पर उसमें इनकी भागीदारी इस स्तर पर नहीं होती थी। आज लगता है मानो मैंने कितना कुछ छीन रखा था इनका, आज ये अपनी जिंदगी आजादी से खुल कर जी रहे हैं। और मैं कमरे में कैद इन्हें खुलकर जीता देख रहा हूं। और मानों ये मुझपर हंस रहे हों। जैसे मैं इनके लिए कोई मनोरंजन हूं। जैसे पहले यह पिंजड़े में बंद हो मेरे लिए हुआ करते थे। मेरे जीने और इनके जीने में मेरा सर्वाथ हमेशा से ज्यादा था। उस सर्वाथ ने आज मुझे गुलाम बना दिया है। इस गुलामी में जीना मेरे लिए खुद की गलती को स्विकार करने जैसा है।                -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com
  
  
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