सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, April 20, 2020

अबे पागल हो गया है क्या?

अपनी धुन में। कुछ मेरे जैसा , कुछ खुद के जैसा। पागलों सा। उस पागलपन में लम्बी डुबकी लगाता हुआ। जब तक कोई ऊपर से आवाज ना दे। अबे पागल हो गया है क्या? मैं उसी पागलपन का आदि होना चाहता हूं। जहां कोई मुझसे आकर बोले, अबे पागल हो गया है क्या? और मैं चेहरे पर लम्बी मुस्कान लिए बोलूं नहीं बस आनंद में हूं। 

 -पीयूष चतुर्वेदी                 

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