सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, April 22, 2020

कंचे

खुशी, जेब में बज रहे कंचो की आवज से खुश होता हुआ। वहीं कंचे जो इसने अपनी गाड़ी देकर दोस्त से बदले में प्राप्त की है। उस प्राप्ति में अफसोस की हवा भी बह रही है। जिसमें कष्ट है उन कंचो के साथ अकेले खेलने का। जेब में रखे कंचे का साथ पाकर भी ऐसी त्रासदी का सामना करना कि खुशी प्रभावित हो जाए, बचपन को खोने जैसा है। -पीयूष चतुर्वेदी   

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