सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Saturday, April 25, 2020

सुबह

एक सुबह है, जिसे जल्दी है जिम्मेदारी की पगडंडी पकड़ रात के घर जाकर अपनी थकान मिटाने की। एक रात है जिसे जल्दी है नींद के घर पहुंच, चैन की नींद सो जाने की। एक नींद है जिसका लक्ष्य है सपने के घर खुद को टिकाए सपनों में खो जाने की। एक सपना है जिसका साथी मैं हूं। जिसका सपना है मुझे इन सबसे एक साथ मिलाने की।एक सुबह है जो थका हुआ है। एक रात है जो सोया हुआ है। एक नींद है जो खोया हुआ है। एक सपना है जो जागा हुआ इन सब को एक दिशा दे रहा है। एक मैं हूं जो सपना देख रहा हूं और इन सबको एक बस्ते में बंद कर ढोता हुआ हिसाब से खर्च कर रहा हूं। -पीयूष चतुर्वेदी https://itspc1.blogspot.com

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