हम हर रोज ना जाने कितनों से नाराज़ होते हैं। कुछ अपने होते हैं तो कुछ अपने होने जैसे, कुछ का तो बस होना हीं काफी है वहीं कुछ बिल्कुल अंजान। जैसे राह चलते अजनबी जिनसे हमारा कोई संबंध नहीं लेकिन हमारे निर्णय लेने की आदत वहां भी नाराजगी को उत्पन्न करती है।
इन सब के मध्य जब हम नाराज़ होते हैं तो कुछ भी अपना नजर नहीं आता। उस क्षण के लिए परिस्थिति हमारे मन पर हावी हो जाती है। उस क्षण मानों ऐसा लगता है हम सिर्फ नाराज हीं नहीं, मानों एक गुस्से ने जन्म लिया हो हमारे भीतर। नाराजगी को दूर का एक तरीका हमें अपनाना चाहिए। उस पल हमें एक कलम लेकर कागजों पर नाम लिखने चाहिए। उनके जिनसे हम नाराज़ हैं। या पहले हो चुके हैं। फिर हम एक दिन ऐसा पाएंगे जब वो सारे नाम बार-बार आ रहे हैं। हमें यह साफ नजर आएगा कि अरे! इनसे तो हम पहले भी नाराज़ हो चुके हैं। किसी बात को लेकर। और आज फिर.... हम तो वापस इन्हीं से नाराज़ हैं। हम पहले भी ऐसा कुछ कर चुके हैं। उस दिन भी कोई कारण रहा होगा नाराज़ होने का। और अगर था तो आज फिर क्यों हुआ? क्या हम बार-बार एक हीं व्यक्ति से नाराज़ हो रहे हैं? बस कारण बदलते जा रहें हैं? हमें एक काम करना चाहिए लिखे हुए नाम जो दूसरा आते हैं उन्हें मिटा देना चाहिए। और किसी से नाराज़ होने से पहले एक बार सूची में नाम देख यह तय कर लेना चाहिए कि हम इनसे पहले तो कभी नाराज नहीं हुए? अगर हो चुके हैं तो दूबारा होने की जरूरत नहीं। बस उस नाम को देख सब भूल जाना चाहिए। फिर हमें यह कहने में जरा भी मुश्किल नहीं होगी, अरे! इससे क्या नाराज़ होना? इससे तो हम पहले नाराज़ हो चुके हैं। हम एक हीं आदमी से बार-बार नाराज़ कैसे हो सकते हैं? और क्या है उचित है? हम तो इस समय को पहले भी जी चुके हैं। फिर वापस क्यों? हमें इसकी जरूरत हीं नहीं। सच कहूं तो हमें किसी से नाराज़ होने की जरूरत नहीं। असल में नाराजगी हमारे स्वार्थ को दर्शाती है।
-पीयूष चतुर्वेदी
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