सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, May 4, 2020

मौन है। समझदारी का भाव उत्पन्न हो रहा है। हमनें मौन रहना बंद कर दिया। हमारी आवाज शोर का हिस्सा है। हमें कौन सुन रहा है? हम किसे सुन रहे हैं? क्या हम सुन रहे हैं? नहीं हमने सुनना हीं बंद कर दिया। -पीयूष चतुर्वेदी Https://itspc1.blogspot.com

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...