सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, June 15, 2020

शहर

शहर भी अपनी जिद पे अड़ा है। मानों जैसे ना अपनाने की बात कह रहा हो। पूराने बंधे सारे गिरह टूट गए हों। या अपना हीं डर है जो तैयारी नहीं इस त्रासदी को अपनाने को। क्योंकि इस त्रासदी की असली मार तो शहर झेल रहा है। भाग तो हम रहें हैं। शहर जड़ हुआ पड़ा है। -पीयूष चतुर्वेदी

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