जब सब कुछ हमारे मध्य समाप्त हो जाएगा।
जब ताक रहा हूंगा मैं आसमां की ऊंचाई में बादलों को खेलता हुआ और धरती से लगी दूर कहीं तुम बैठी खेल रही होगी धूल के उड़ते कणों से।
तब एक शब्द हीं होगा जिसकी बारीश से सब एक हो जाएंगे।.......
कुछ पल के लिए सब शांत हो जाएगा...
बादलों का बेतरकीबी से भटकना और धूलों का आवारा की तरह उड़ना।
वहीं वापस मिलना होगा।
-पीयूष चतुर्वेदी
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