न्यूनतम इंसान को इंसान को इंसान समझने की भूख सभी में होनी चाहिए। लेकिन सत्ताजिवीयों की समझ को दीमक लग गया है। भूख लगने पर उन सबों ने केवल गरीब जनता के शरीरों को गिद्धों जैसा नोचा है। बहुत बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल हैं।
-पीयूष चतुर्वेदी
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा। हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल? का पता हो,...
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