सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, June 23, 2021

न्यूनतम

न्यूनतम इंसान को इंसान को इंसान समझने की भूख सभी में होनी चाहिए। लेकिन सत्ताजिवीयों की समझ को दीमक लग गया है। भूख लगने पर उन सबों ने केवल गरीब जनता के शरीरों को गिद्धों जैसा नोचा है। बहुत बड़ी संख्या में लोग इसमें शामिल हैं।
-पीयूष चतुर्वेदी

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...