सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, January 20, 2023

प्रकृति के शांत रहने जितनी शांति।

नदी के बहने जितनी शांति।

हवा के चलने जितनी शांति।

झरने के गिरने जितनी शांति।

शिशु के रोने जितनी शांति।

बच्चों के हंसने जितनी शांति।

तरूण के मौन जितनी शांति।

वृद्ध के कराहने जितनी शांति।

प्रकृति के शांत रहने जितनी शांति।

इतनी हीं शांति की आवश्यकता है। 

शहर की शोर जितनी शांति सोने नहीं देती।

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