सफरनामा

My photo
Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, January 20, 2023

हर उम्र की अपनी कहानी होती है

सभी के जीवन में उम्र अपनी कहानी स्वयं लिखता है। हर उम्र की अपनी कहानी होती है। जिसे पहला कहता है।
दूसरा सुनता और तीसरा देखता है।
और जिसकी उम्र होती है वह उसे जी रहा होता है। 
लेकिन हर उम्र में एक बात समान होती है वह है आकर्षण। 
जीवन आकर्षण के सिध्दांत पर आगे बढ़ रहा होता है। हम जिसके प्रति आकर्षित होते हैं उसके करीब खींचे चले आते हैं। बढ़ते उम्र और बढ़ती समझ और उपयोगिता के क्रम में आकर्षण का केंद्र बदलता भी रहता है।
जैसे बच्चों को बचपन में खिलौने पसंद होते हैं और बड़े होने पर खेल। 
मुझे दो का पहाड़ा अब तक याद है लेकिन उन्नीस के पाहड़े में मैं खो जाता हूं। बचपन में मिले लोगों के नाम उनके आवाज सुनकर भी याद आ जाते हैं लेकिन २ मिनट पहले बोझिल मन से मिले लोगों के नाम मैं भूल जाता हूं। 
जैसे मैं हर बार एक हीं बस से सफर करना पसंद करता हूं। भूख लगने पर हर बार उसी होटल में खाना पसंद करता हूं जहां पहले खाया था और मुझे भोजन स्वादिष्ट लगा था। 
जीवन से जुड़े कुछ आकर्षण हमारे संस्कार से भी जोड़कर देखें,सुने और कहे जाते हैं। जहां चरित्र संस्कारवान लोगों से दबा हुआ आख़री सांसें ले रहा होता है और आंखें अपने देंह, बुद्धि, मन सभी से लड़ाइयां लड़ रही होती हैं।
जैसे मेरे बाबा को बैजन्ती माला पसंद थी उनकी फिल्में देखने के लिए बाबा चुपके से जाया करते थे।
मेरी फूआ को शाहरुख खान और मां को मनोज वाजपेई बहुत पसंद हैं। आज भी उनकी फिल्में टीवी पर आती हैं तो नज़रें स्थिर हो जाती हैं। 
ऐसा सिर्फ फिल्मी पर्दे पर चिपके लोगों के साथ नहीं होता ऐसा गली मुहल्लों में भी होता है।
ऐसे और भी तमाम उदाहरण हैं। 
जैसे कुछ ने प्रेम विवाह किया। कुछ करना चाहते हैं और कुछ कर नहीं सके। तीनों स्थिति में आकर्षण मूल है। आकर्षण के सिध्दांत पर आप सफल भविष्य की कामना निश्चित नहीं कर सकते। और यह किसी भी क्षेत्र में पूर्णतया संभव नहीं है। यह हमें किसी भी चौराहे पटक सकता है।
हमें गलत रास्तों पर भी ला खड़ा करता है। कुछ उस रास्ते को छोड़ आते हैं तो कुछ वहां भटकते हैं। जो भटकते हैं वह उनका फैसला है जो नहीं भटकते वह भी फैसला निजी है। परंतु चरित्र दोनों के ही तौले जाएंगे। चर्चा दोनों पर समान होगी। 
क्यों? 
क्योंकि चर्चा कर रहा व्यक्ति बुराई करने के प्रति आकर्षित है।

No comments:

Popular Posts

सघन नीरवता पहाड़ों को हमेशा के लिए सुला देगी।

का बाबू कहां? कानेपुर ना? हां,बाबा।  हम्म.., अभी इनकर बरात कहां, कानेपुर गईल रहे ना? हां लेकिन, कानपुर में कहां गईल?  का पता हो,...