सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, January 20, 2023

हमें समझ होती कुछ खास चुनने की

कास हमें समझ होती कुछ खास चुनने की।
कुछ ठीक-ठाक लोगों का साथ होता ठीक-ठीठ समय पर।
तो शायद हम ठिठके ना होते असमय बिना किसी ठीक-ठाक कारण के।
हमारा सारा चुना हुआ बस एक जल्दी में चुना हुआ यथार्थ है। 
जैसे हम चुन लेते हैं सरकारें। फिर देते हैं दोष सरकार को। 
जैसे चुनते हैं हम आम जीवन के रिश्ते फिर नाराज़ होते हैं रिश्तों से।
जैसे चुन लेते हैं हम कुछ आदतें फिर बनते जाते हैं उनके गुलाम। 
सब कुछ तो हमारा चुना हुआ था ना? 
फिर दोषी कोई और क्यों?कास हमनें पूर्ण तैयारी कर ठीक समय पर ठीक-ठीक फैसलों से ठीक-ठाक चुनाव किया होता तो सच में दोष हमारा होता। 
लेकिन हमनें स्वयं को दोष देना सीखा नहीं। किसी से सिखाया भी नहीं। सभी ने बस सच बोलने कि बात की। पर सच तो वह है जो हमें सच लगती है, दिखती है। 
बस यहीं कारण है और हम मुठ्ठी भर-भर चुनते गए। 
और उस चुनाव का सच यह है कि हमारे किसी भी चुनाव में हमारा सच शामिल नहीं। बस चाहत है,जरूरत शामिल है। 
कास हम ठीक समय पर ठीक-ठीक चुनाव कर पाते तो दोषी भी हम होते। गलती भी हमारी होती। सुधार भी हमारा होता।
बदलाव भी हमारा होता।

-पीयूष चतुर्वेदी 

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