सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 26, 2023

चेहरा

बुरे वक्त का चेहरा कैसा होता होगा? 
ज़बाब अति कठिन है। 
बुरे वक्त को पहचानना सरल लेकिन उसका वर्णन करना कठिन।
हम उसकी रूप रेखा कभी नहीं खींच सकते। खींचने के प्रयास में हमें आंसूओं की बाढ़ हाथ लगेगी जिससे सभी दूर भागना चाहते हैं। 
अच्छे वक्त के चेहरे को मैं पहचानता हूं। 
मेरे लिए अच्छा वक्त जो इस तस्वीर में दिख रही हैं वो हैं। चाची।
मां का वर्तमान जब तक वर्तमान रहेगा इनका ऋणी रहेगा। जीवन पर किसी का हक नहीं होता लेकिन साथ जीवन को नई दिशा देता है। जब साथ कोई नहीं था तो चाची का हीं साथ था। अपनी स्थिति से उठकर करना हर व्यक्ति का स्वभाव नहीं होता। वह स्वभाव हर कोई अंगिकार नहीं कर सकता। वह चाची का स्वभाव था। उसी स्वभाव ने मेरे घर को सींचा है।
उस साथ को किसी भी लड़ाई द्वारा भुलाया नहीं जा सकता। नफरतों की खाईं भी यादों को गुम नहीं कर सकती। 
लड़ना व्यक्ति का हक हो सकता है। त्वरित क्रोध का उजजवलीत रूप हो सकता है। भीतर उठती टीस की तपिश हो सकता है लेकिन स्वभाव नहीं।

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