सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 26, 2023

वेडनेसडे विथ मौरी

पिछले तीन महीनों में इनसे दूसरी बार मिलना हुआ। माईकल स्टीव हां यहीं नाम है जर्मनी से हैं। अजीब सी आवाजें निकालते हैं। चलते-चलते दौड़ने लगते हैं फिर अगले हीं पल जम जाते हैं। बैठे-बैठे सो जाते हैं। पहली नजर में हीं मुझे इन्हें देखकर मौरी की याद आई थी। 
मिच एलबम की किताब ट्यूजडे विथ मौरी के मौरी जी। 
इनका बाहें फैलाकर तेज हवा को महसूस कर उड़ने की कोशिश करना बिल्कुल मौरी जैसा है। बुझी हुई सिगरेट को कमरों के कोने में छुपा देना मौरी के अपने आसपास बिखरे गंदगी को छुपाने जैसा है। 
मैंने इनसे कहा आप मौरी जैसे दिखते हैं। आपके व्यवहार में समानता है। 
कौन मौरी? 
मैंने मौरी की नाचती हुई तस्वीर दिखाई उस मौरी कि जिससे किताब के माध्यम से जुड़कर मैं कई सपनों में उनसे मिलता रहा। निंद में बड़बड़ाता रहा। आंसूओं का गिलापन तकिए पर महसूस करता रहा। 
उन्होंने तस्वीर देखकर कहा , हां थोड़ा-थोड़ा। और नरम मुस्कान बिखेर दी। मेरे लिए इनसे मिलना मौरी से दूबारा मिलने जैसा था। मैं वेडनेसडे विथ मौरी कह सकता हूं। पिछली बार एक सप्ताह का साथ प्राप्त हुआ था। 
पिछली बार जब इन्हें सिगरेट पीता देख मैंने साथ के सुरेश के लिए कहा था यह भी सिगरेट पीता है तो उन्होंने आंखों को लाल कर कहा था नहीं यह तुम्हारी उम्र नहीं और कभी नहीं और अगले हीं पल एक सिगरेट आगे परोस दी थी। वो दिन भी वेडनेसडे था।
-पीयूष चतुर्वेदी

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