पिछले दिनों मैं दो चीजों से परेशान था।
एक गर्मी और दूसरे मोदी जी।
अब गर्मी का दिन है तो सूरज आग उगल रहे हैं धरती तप रहा है। और सीमेंट से सजा कमरा जल रहा है।
फिर मोदी जी राम राज्य के कल्पना को अंगिकार करते हुए उस जलन में अंधकार पैदा करते हैं।
हर रात में तपन के साथ काला गहरा अंधकार। जिसमें मोबाइल का फ़्लैश जलाने पर खूब बड़ी सी अपनी परछाई नजर आती है। खाना बनाओ तो प्याज से पहले परछाई कड़ाही में कूद जाती है। अब परछाई की भी सब्जी कोई सब्जी हुई? अंधेरे में नमक का खारापन और मसाले का बदरंग सारा स्वाद निगल जाता था।
हांलांकि मैं इसके लिए विकास पुरुष को भी दोषी नहीं मानता। जैसे मैंने गर्मी या सूरज को नहीं माना। हो सकता है इसमें भी राष्ट्र सेवक मोदी जी का कोई मास्टरस्ट्रोक हो जिसका महिमा मंडन करने में मिडिया असमर्थ रही हो। या विकास पुरुष राम राज्य को वास्तविक रूप में चित्रित करना चाहते हों। अब भाई उस दौर में बिजली थोड़े हीं हुआ करती थी। विश्व गुरु का निर्माण बल्ब से नहीं दीपक से होता है और अयोध्या में हर वर्ष लाखों दीपक सरयू तट पर जलाया हीं जा रहा है। फिर कानपुर तो उत्तर प्रदेश में और अयोध्या के करीब भी है यह अलग बात है कि उसकी रोशनी यहां तक नहीं पहुंचती। उसपर अकबरपुर के नाम में मुगलिया सल्तनत की गंध भी तो आती है।
इसलिए अंततः हमने तय किया कि हम अब प्रधान सेवक मोदी के राम राज्य को महात्मा टेस्ला के बैट्री बैंक राज्य से आईना दिखाएंगे। हांलांकि कि राम राज्य महात्मा गांधी का भी स्वप्निल संसार था लेकिन उन्होंने बैट्री की खोज नहीं की थी। उनके पास आईना था या नहीं मैं इससे भी अंजान हूं।
वैसे आईना में खुद को देखना भी हमारे लिए एक प्रकार का संघर्ष है क्योंकि घर में आईना नहीं है। कंपनी के टायलेट में आईना है लेकिन भरपूर सफाई नहीं है। हांलांकि देश में अगर कुछ साफ बचा है तो वो गांधी जी का शुलभ शौचालय के बाहर बनाया हुआ सरकारी गोलकार चश्मा और नेताओं का अंतर्मन।
अब आईना नहीं है तो बैट्री वाली एलईडी बल्ब कैसे खरीदी जाए?
इसी बीच अकबरपुर में रविवार की शाम एक किडनैपिंग वैन , अरे वहीं जिसमें अपने राधे भैया निर्जला को किडनैप किए थे। उसी में एक महिला थकी हुई हिंदी भाषा में आवाज लगा रही थी १०० का एक।
इस महंगाई के दौर में सस्ता दाम सुनकर जहां सिर्फ सभी धार्मिक संगठनों के लिए विरोधी धर्म के उपासकों का जीवन सस्ता है वहां यह सुनकर हम उसकी ओर लपके।
हम सब पहुंच गए वैन के पास जो पिछे से खुला जैसे हारे हुए सेंटिंगबाज नेताओं के राज्यसभा और विधान परिषद का द्वार खुला होता है।
पूछे की क्या बात कर रही हैं? इतना सस्ता कैसे?
महिला खुद को उस छोटी सी जगह में व्यवस्थित करते हुए बोली कि कंपनी का छूट चल रहा है अबी।
हम लोग कंपनी का बेच रहा है।
आप दक्षिण से हैं क्या?
आं उदर से हीं। उदर में ये ऐसा करके बहुत सस्ता बिकता है तो अभी इदर को मैं आई।
हां, अच्छा। हम लोग भी कभी साउथ गया नहीं। लेकिन मेरे घर के साउथ में पहाड़ है और मैं फिल्में बराबर देखता है। उधर का सब बड़ा-बड़ा हीरो लोग को जानता मैं।
अबी आप लोग कितना लेगा?
मैं तो एक हीं ना। किचन में खाना बनाने को दिक्कत होता मेरे को।
उसने मुंह बनाते हुए इस संवाद को अच्चा शब्द के साथ समाप्त किया। और हमें डब्बा थमा दिया।
मेरे मित्र ने कहा चेक तो करवाईए।
उसने बल्ब को २ मिनट के लिए साकेट में लगाया फिर बाहर रखकर जलाने की कोशिश की लेकिन वो अंधकार लिए बैठा रहा।
फिर उसने रूमाल पर हल्का पानी डाला और उसपर रखा और बल्ब अपनी पूरी क्षमता के साथ अंधकार को काटता हुआ जल उठा।
हमनें कहा सर्किट के साथ जलाइए।
तो ज़बाब आया अभी ऐसा नई कर सकता मैं। जलेगा आप लेके जाओ। मैं अबी इदर हीं रहेगी आपको कोई दिक्कत हो तो अगला संडे बताने का।
हम मन बना हीं रहे थे कि हमारे मित्र ने प्रश्न किया कि आपने रूमाल पर पानी क्यों डाला?
तो महिला ने सधे हुए जानकारी से भरपूर शब्द में बोला अर्थींग दिया उसको।
हम बल्ब घर लेकर आए। किचन में उसे पूराने की जगह स्थापित किया। २० मिनट की लंबी अवधि को काटने के बाद हमें आभास हुआ कि शायद हमारा काटा गया है।
लेकिन इस उम्मीद में महिला है। और महिला देवी का स्वरूप है बसरते वह लंका की ना हो हमने अगले दिन का इंतजार किया।
अगले दिन यह समय २० मिनट से एक मिनट आ रूका।
फिर हमें विश्वास हुआ की हम ठगे जा चुके हैं। २ रविवार बीत गया। वह गाड़ी दुबारा नहीं दिखी। अब लंका दक्षिण में है लेकिन भारत से बाहर है। अयोध्या भारत में है। वो अलग बात है कि वहां भी राम राज्य नहीं है। फिर अकबरपुर में राम राज्य की कल्पना करना संविधान की हत्या करने के समान है। हांलांकि इस चुनाव में संविधान जीवित बचा रह गया। जिसका विपक्षिय तार्किक ज्ञान यह है कि अयोध्या में अवधेश जी विजय हुए। और संविधान को उन्होंने भी अपनी यात्रा में शामिल किया जो आपातकाल की सीढ़ी उतरते हुए भारत जोड़ो यात्रा में शामिल थे।
इस विजय पराजय के संवैधानिक लड़ाई में हम राम राज्य पर महात्मा टेस्ला को नहीं पा सके।
इस स्थिति से व्यग्र मिश्रित क्रोध में एक मित्र ने कहा साला चूतिया बना के चली गई यार!
मैंने कहा नहीं अर्थींग बना के चली गई।
अब हमारे लिए चूतिया शब्द अर्थींग के रूप में परिणित हो गया है। जो राम राज्य के स्थापित होने तक प्रतिष्ठित भी हो जाएगा।
अभी वह दक्षिणभाषी महिला किसी दूसरे शहर में लोगों को अर्थिंग बना रही होगी।
यहां लगभग सभी अर्थींग बने हुए हैं।
सरकार
शासक
सेवक
क्रांतिकारी
सभी अर्थींग बन रहे हैं।
सिर्फ महात्मा और महात्मा को छोड़कर।
क्योंकि कड़ी शब्दों में तारीफ़ करते हुए रक्षा मंत्री जी ने घोषणा कर दी है कि गुजरात में दो महात्माओं ने जन्म लिया है।
एक अंग्रेजों के दौर में एक हिंदूओं के दौर में। और उन्हें छोड़ बाकी सारे महात्मा अर्थींग हैं।
-पीयूष चतुर्वेदी
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