सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Wednesday, June 26, 2024

यथार्थ के दर्शन करा तुम्हारे आश्चर्य की हत्या करेंगे

रिश्तों के जंगल में अभी फूल से महकते हुए तुम आगे बढ़े जा रहे हो। तुमसे भविष्य की उम्मीद लिए हम सब जो कांटे साफ रहे हैं तुम्हारे बड़े होते हीं तुम्हारे समझदार होने का कांटा तुम्हें चुभाऐंगे और कहेंगे कि तुम्हें बड़ा कामयाब आदमी बनना है। अपनी लालच को पहाड़ों सा ऊंचा करेंगे अच्छा आदमी ना बनने के क्रम तुम्हारे कामयाबी का आईना दिखाकर दौड़ाएंगे। यथार्थ के दर्शन करा तुम्हारे आश्चर्य की हत्या करेंगे। तुम्हारी खिलखिलाती सजीवता को जिम्मेदारियों की धीमी आंच में सेकेंगे। तुम्हारे शरारतों को संघर्ष की कहानी सुना तुम्हें डराएंगे। तुम्हारे धुले हुए बचपन को परिपक्वता की धूल से नहलाएंगे। तुम्हारी माफ हो रही गलतियों को अपने अहंकार की तलवार से कोसेंगे। हमारा मीठा चुंबन डांट में बदल जाएगा। हमारा दुलार तुम्हें दोष देने में खर्च होने लगेगा। अभी का तुम्हारे साथ तुतलाना हमें गंभीरता लिए मौन कर देगा। अभी तुम जिंदगी जी रहे हो। हम जिंदगी से लड़ रहे हैं। हम तुम्हें उसी जिंदगी का डर दिखा तुम्हारी स्वतंत्र, स्वच्छ इच्छाओं को अपना आहार बनाएंगे। जब तुम अपनी सफलता और असफलता से लड़ रहे होगे उसी क्षण इस लिखे हुए का विस्तार हो जाएगा। 
जन्म दिवस कि हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। उस दिन के लिए जब तुम इसे अतीत के कोने में कूदकर पढ़ोगे। समझने की चेष्टा करोगे। उसी क्षण हमें तुम पर दया दिखानी होगी या अपनी स्थिति पर संतुष्ट हो हमें सराहना होगा।

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