लंबा इंतजार करना पड़ता है भीतर पनप रहे दुष्टता, क्रूरता और द्वैत को चेहरे पर आने से रोकने के लिए। लालकिला पर सभी को साथ बैठकर जनता को अर्थींग बनाना पड़ता है।
लेकिन तो हर रात इस तरह की बर्बरता को देखकर हुए अपने स्वप्न और दुस्वप्न से मिलता हूं और अधजगा सा सुबह जाग जाता हूं।
लेकिन आज मैं थका हुआ नहीं उठा। मेरी निंद पूरी थी बिल्कुल इमानदार स्वप्निल से धोया हुआ।
मैं बता दूं मेरे सपने में ना राम आए ना कृष्ण आए और अभी ताजा-तरीन गणेश जी भी नहीं आए जो महाराष्ट्र के सेवकों के स्वप्न में आकर उन्हें आशिर्वाद देते हैं।
मेरे स्वप्न में आए थे अमर शहीद क्रांतिकारी। लेकिन मैं यह सुनिश्चित कर दूं कि वहां भी गोड़से नहीं आए थे। सुना है अब भोपाल के किसी मंदिर में बसे हुए हैं। गांधी भी नहीं आए थे। जब से किसी विशेष परिवार ने उनका पेटेंट कराया है उनका सिर्फ चश्मा कचड़े के डब्बे पर नजर आता है।
फिर उन क्रांतिकारियों के चेहरे साफ होते गए। बचपन से देखी हुई चित्रों को आधार बना मैं उन्हें पहचाना आरंभ हीं किया था कि "पट् पट् पट्" की आवाज सुनाई देने लगी।
क्रोध और अफ़सोस की सम्मिश्रित आवाज में वो कह रहे थे "भोंसड़ी" के इसलिए हमलोग अंग्रजों के खिलाफ देश को आजादी दिलाने की लड़ाई लड़ें थे? अपनी नशों को बर्फ की सिल्लियों पर जमाया था? फांसी के तख्ते को चूमा था। विकलांगता को स्विकार किया था। वर्षों जेल में व्यक्ति किया था। अपनी तरूणाई को जंग में गलाया था ताकि तुम हमारे संघर्ष का सर्वनाश कर सको?
जगह-जगह गंदगी फैला सको?
खुले में थूंकते चलो?
पान मसाला की लाली से सड़कों को मैला करते चलो?
पिच्च की मधुर संगीत से लोगों को बहरा कर दो?
कानून को अस्वीकार कर बाहुबली,दबंग बनो?
गरीबों का शोषण करो। संपन्नता के आगे नतमस्तक हो जाओ? घर का पानी सड़कों पर उतारो। बोल... ज़बाब दे।
कानून का पालन ना कर खुद की योग्यता प्रदर्शित कर सको?
सोशल ऐप्स पर नग्नता फैलाने के लिए हमनें काला पानी की सजा भोगी थी?
क्या जबाब देती जनता?
जनता भागे-भागे आई सेवक के पास।
प्रधान सेवक।
युवा सेवक।
चाणक्य सेवक।
राजपूत सेवक।
ब्राह्मण सेवक।
चमार सेवक।
भूमिहार सेवक।
और उनसे गिड़गिड़ाते हुए रोने के स्वर में अपने घुटने को मैला कर कहा... हे सेवक महोदय हमने आपके खूब सेवा की है। अपनी सारी कमाई का थोड़ा हीं हिस्सा अपने लिए बचा पाया है। बाकी सारा आपको अर्पित कर दिया है। आपकी सेवा करते हुए भी हमारी भक्ति पर चाबुक बरसाए जा रहे हैं। रक्षा करें महोदय। रक्षा करें।
कोई सेवक कुछ बोल पाया उससे पहले क्रांतिकारियों ने सेवकों को भी उसी चाबुक से धोना आरंभ किया।
"पट् पट् पट्" मूर्ख बना रखा है। अर्थिंग समझे हो सभी को।
देश को धर्म के नाम पर लड़ाते हो। निरपेक्षता को अपनी लालच से मैला करते हो। वर्ष में एक दिन एकता के संगीत बजा पूरे वर्ष धर्म,जाती, समुदाय,पंत के नाम में अलगाव फैलाते हो। 55 वर्ष की आयु में स्वयं को युवा बता बुजुर्गों का अपमान करते हो।
सभी सेवक एक साथ दया भाव से बोल पड़े,माफी चाहते हैं वीर पुरुष माफी। आपकी अमरता को प्रणाम करते हैं। आपके विचारों का सम्मान करते हैं। लेकिन चाबूक कहां रूकने वाला था।
फिर उस को सहने की क्षमता आज के खादी धारकों में कहां?
नेता भी कहां रूकने वाले थे।
भागे सब अपने-अपने पदों और कार्यभार से संबंधित जगहों पर।
लोकसभा
राज्यसभा
विधानसभा
विधानपरिषद
सेना की निगरानी में स्वयं में बंद किया। और सारे ने मिलकर।
प्रधान सेवक
युवा विपक्ष
आदिवासी नेता
संविधान संरक्षक
लेफ्ट
राईट
अपने जिले, प्रदेश, बूथ पर चिंतित हृदय से सभी की उपस्थित में सरकार ने एक कानून बनाया जिसका सभी ने हाथ उठाकर समर्थन किया। और यह तय हुआ कि यार! आंत्रिकारी क्रांतिकारी किताबों में ठीक हैं। आपके हक की लाठी भांजते लोगों को खेतों में खटने दो। अमरता के नारे मंचों की शोभा बढ़ाते हैं। अभी इनकी जरूरत वर्तमान समाज में नहीं है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए ये खतरा हैं इन्हें वापस पुस्तकों में कैद किया जाए।
और फिर अगली सुबह सारे सेवक सेना की सुरक्षा में दिल्ली लालकिला पर सजे हुए हैं। नारों की गूंज दिल्ली को बहरा बना रही है। जनता अपने मज़बूत और मजबूर काम के साथ आगे बढ़ रहा है। कुछ जागरूक लोग टीवी पर सुबह से अपनी आंखें बंद किए चिपके हुए हैं।
अब आप कहेंगे की क्रांतिकारियों ने सेना का विरोध क्यों नहीं किया? तो भैया पान सिंह तोमर जी ने कहा था सेना छोड़ बाकी सब चोर। इसलिए उन्होंने सेना का सम्मान किया। और वह कितने भी नाराज क्यों न हों लेकिन भूतपूर्व कानून मंत्री जैसी सोच नहीं रखते। वो भारत का थोड़ा क्षय बर्दाश्त कर सकते हैं लेकिन पाकिस्तान
बंगलादेश या श्रीलंका जैसे स्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकते। और जिस रोज ऐसी स्थिति पनपेगी उनका समर्पण और भी क्रांतिकारी और मजबूत होगा।
स्वतंत्रता दिवस अमर रहे।
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