सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, September 9, 2024

गांधी जी केवल कूड़ा घर देखते हैं -पीयूष चतुर्वेदी

अक्सर मेरी बहुत सी उपयोग की चीजें गायब हो जाती थीं। ब्रश, रूमाल, मोजे जैसी मूलभूत और हल्की चीजें। मैं अक्सर सोचता कि कौन ले जा रहा है इन्हें? और ले भी गया तो करेगा क्या सब तो मेरा इस्तेमाल किया हुआ है। फिर एक रोज मेरा खादी का मास्क गायब हो गया जो मेरे एक दोस्त ने गुजरात से भेजा था। मैंने गुजरात और गांधी के बारे में केवल सुना है। इसलिए इन दोनों के बारे में मेरी जानने की प्रबल इच्छा रहती है। मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन किसने लिया यह जाने बिना सारा गुस्सा एक अंग सूचक गाली के निकलते हीं समाप्त हो गया। फिर धीरे-धीरे उत्पात बढ़ता गया। कहते हैं घर और मकान में अंतर होता है। मैं भी मानता हूं। घर की सफाई हम रोज करते हैं अगर मन से नहीं भी किया तो बेमन झाड़ू जरूर फेर देते हैं। झालों पर नजरें घुमा लेते हैं। मैं भी मकान की सफाई करने में जुटा तो पाया मेरा सारा खोया हुआ कमरे के कोने में आलमारी के निचे बेतरतीबी से समेटा हुआ है। जिसमें से एक चूहा झाड़ू का स्पर्श पाते हीं भाग खड़ा हुआ। उस रोज मैं यह जान पाया कि यह चूहे की करामात है। लेकिन हद तब हुई जब एक सुबह नहाने जाते वक्त मैंने देखा मेरा साबुन काटा हुआ है नुकिले औजार से हर किनारे से। उसी रोज मेज पर पड़ा सौ रुपए का नोट जो विमुद्रीकरण के बाद वाला था। वह भी नुकिले तरीके सा कटा हुआ था। गांधी जी को छोड़ उसमें सब गायब था शायद नोट काटने वाला गोड़से का विरोधी हो। मुझे समझने में देर नहीं लगी यह काम भी चूहे का है। सबने सलाह दी मार दीजिए साले को। तरह-तरह के उपाय भी बताए। आटा में जहर मिलाने के तो किसी साधु भाव के व्यक्ति ने बोला चूहे दानी में पकड़ के बाहर फेंक दीजिए। मैं दोनों के लिए तैयार नहीं था। आटा में जहर मिलाने की मेरी हिम्मत नहीं थी और चूहे दानी पर पैसा खर्च करना वो भी ऐसे दौर में जब मेरे मच्छर दानी में मुझसे ज्यादा सुकून से मच्छर सो रहा हो मुझे व्यर्थ लगा। मैंने अपना सारा सामान छुपाना शुरू किया किताबों को छोड़कर। मुझे ताज्जुब हुआ कि चूहे ने मेरे किताबों को दांत तक नहीं लगाया। सिर्फ वहीं नहीं किसी भी सामान को सिर्फ साबून और नोट को छोड़। मुझे लगा वह नोट को पहचान नहीं पाया शायद पूराना वाला समझ काट गया होगा और साबुन लगाकर जरूर नहाता होगा। और शायद वह किताबों का शौकीन है इसलिए उन्हें काटता नहीं। 
मैंने यह बात अपने दोस्त को बताई और उससे कहा सोचता हूं इसे मार दूं लेकिन ये अच्छा है यार! उसने कहा तुझे कैसे पता तुने उससे बात की? मैंने बोला नहीं किताबों को नहीं काटता। नोट में भी गांधी जी बचे थे शायद उन्होंने उसे देखा होगा। दोस्त ने कहा नहीं बे गांधी जी तो कचड़ा घर देख रहे हैं। आजकल जमाना बदल गया है। हम दोनों हंसे फिर मैंने बोला क्या करूं मार दूं? 
उसने बोला किताबें तो नहीं काटता न फिर रहने दे। मान ले अगली दिवाली को गणेश जी को तेरे घर आना हुआ तो कैसे आएंगे? मैंने बोला तू पागल है? तुझे कैसे पता वो गणेश जी का चूहा है? उसने बोला तो तुझे कैसे पता वो गणेश जी का चूहा नहीं है? और उसने किताबें भी तो नहीं काटीं। गांधी को भी नहीं मारा। गांधी को मारता तो देशद्रोही होता ना? मैंने अचानक हीं पूछा। उसने बोला नहीं पागल मारा नहीं इसलिए देशद्रोही है लेकिन गांधी वाली बात किसी को बताना मत नहीं तो गड़बड़ हो जाएगी। लोग तुझे पाकिस्तान भी भेज देंगे। मैंने ठीक है कहा और फोन रख दिया। उसकी बातें सच में कमाल की थीं। क्या गांधी जी ने चूहे को देखा होगा? वो पहचानते होंगे? इन सब सवालों के बीच मैंने एक साबुन अलग से चूहे के लिए रख दिया। वह हर सुबह कटा हुआ मिलता हर दिन से ज्यादा। एक साबुन एक महिने में ख़त्म हो जाता। उसके बाद से चूहे ने कभी कोई नुक्सान नहीं किया। मानों हम दोनों दोस्त हो गए हों। हमारी बातचीत होने लगी। बातचीत का मतलब ऐसा नहीं था कि वो मुझसे पूछता और हो का हाल है? और मैं बोलता सब बढ़िया आपना कहो। हम बस ऐसे जुड़े थे जैसे लोग दूसरे जानवरों से जुड़ते हैं। जैसे तोता हमारी सारी भाषा नहीं जानता लेकिन हमारा राम-राम कहने पर उसे बार-बार दोहराता है। जैसे कुत्ते को पूरी दुनिया कुत्ता हीं कहती है लेकिन उसका मालिक उसे उसके नाम से बुलाता है फिर वो कुत्ता, कुत्ता कहने पर कान तक नहीं हिलाता लेकिन अपना नाम सुनते हीं दौड़ पड़ता है। क्या चूहा ने भी गांधी जी को राम-राम कहा होगा? या चूहा गांधी जी से हे राम सुनकर भाग गया होगा? या गांधी जी चूहा का नाम जानते होंगे उन्होने उसे पुकारा और चूहा उन्हें पहचान गया। शायद यहीं कारण है कि चूहा ने गांधी जी को दांत नहीं लगाया। लेकिन गांधी जी चूहे की भाषा नहीं जानते हैं। वो तो अहिंसा की भाषा जानते हैं। क्या गांधी और चूहा दोनों दोस्त थे? मुझे लगता है गांधी जी को अब नोटों पर पड़े-पडे़ थकान महसूस हो रही होगी। इमानदारी का गीत गाते लोगों की काली कमाई को देख गांधी जी को अफसोस होता होगा। वो इस सच को समझ गए होंगे कि गांधी से भले कोई नफरत करे लेकिन नोटों से कोई नहीं करता। कभी-कभी मुझे लगता है गांधी और चूहा भी दोस्त थे। मैं भी चूहा से जुड़ चुका था संवेदना के स्तर पर भावनाओं को समेटे। मैं जब भी थाप मारता वह दूर भाग जाता। अन्न का टुकड़ा फेंकता तो पास आकर मुझे देख-देख खाने लगता। और यह लगभग हर रोज होता। अभी कुछ दिनों से साबुन में कोई नया खरोंच नहीं है। मेरे अन्न फेंकने और चू..चू..के आवाज करने पर भी चूहा नहीं आता। मुझे डर है या तो उसे किसी ने मार दिया या वो खुद मर गया इससे इतर किसी ने उसे पाकिस्तान तो नहीं भेज दिया? कहीं गांधी वाली बात किसी ने न जान ली हो। यह सवाल मुझे सबसे ज्यादा विचलित करता है। कुछ मरे हुए चूहे मैंने देखे हैं इधर बीच लेकिन मैं उसकी ठीक से पहचान नहीं कर पा रहा। बगल के कमरे में एक आदमी रहता है। कंधे पर हमेशा नारंगी गमछा लपेटे। मैं उसे नहीं जानता लेकिन वो चूहे को जानता है। मैंने कई बार उसे चूहे को भगाते देखा है। लेकिन वो वहीं चूहा है इसका मुझे ठीक-ठीक अंदाजा नहीं। मैंने उससे डरते हुए पूछा भाई साहब आपने कोई चूहा देखा है क्या? पहले एक घूमता रहता था गलियारों में इस कमरे से उस कमरे। आज कल नजर नहीं आ रहा। उसने कहां हां, देखा था देखिए ना मेरे कमरे के दिवार पर प्रधान सेवक की तस्वीर थी उसने उसे काट दिया। मुझे बहुत गुस्सा आया यह तो देशद्रोह हुआ ना? इसलिए मैंने उसे पाकिस्तान भेज दिया। मैं एक टक उसे देखता रहा। मेरा गला सूखने लगा। मैंने पूछा आपको चूहे ने और कुछ तो नहीं बताया? उसने बोला नहीं। मैंने हल्की धीमी सांस ली। मैंने पूछा आप कभी पाकिस्तान गए हैं? उसने बोला नहीं। पाकिस्तान देशद्रोही जाते हैं। उनका वहीं उचित स्थान है। मैंने अपने मन में बोला फिर तो प्रधान सेवक भी पाकिस्तान गए थे। और फिर तेजी से अपने कमरे में भाग आया। माथे पर पसीना अब बूंद बूंद जमा होकर टूट रहे थे। मेरे पैरों में निरंतर कंपन हो रहा था। मैंने अपने दोस्त को फोन लगाया, उसे सारी बात बताई और बोला सोचता हूं एक बार सोचा गांधी जी से पूछूं कि चूहा कहा है? शायद वो अब भी यहीं कहीं हो। शायद उसका पासपोर्ट ना बन पाया हो? और अगर सेना ने पकड़ लिया तो?  पर दोस्त ने बोला वो बूढ़े हो गए हैं शायद पहचान ना पाएं हों। मैंने बोला पागल है गांधी जी हैं सब देखते हैं। उसने बोला चुप कर गांधी जी अब बस कचड़ा घर देखते हैं। वो भी भ्रष्टाचारियों के काली कमाई ने उनके चश्मे का नंबर बदल दिया है। अब उनकी आंखों के आगे घनघोर काला है। दोस्त ने फोन रखा मैंने डरी हुई दो-चार जोर की सांसे लीं। अब इस कमरे में मैं हूं,नोट पर छपे गांधी जी हैं। उनकी किताब है लेकिन चूहा नहीं है।

-पीयूष चतुर्वेदी

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