उमंग से भरी।
उम्मीद से सजी।
चंचलता की धनी।
उम्र से थकी।
लड़खड़ाती आवाज का अधूरापन इन्हें पूर्ण करता है।
लगभग हर वर्ष में गिनती का एक बार मिलना होता है और बेहद कम अवधि के लिए होता है। मुलाकात में स्नेह से सजी प्रेम की वर्षा होती है। चश्मे के भीतर से आंखें ऐसे प्रकाशित होती हैं मानों ममता आंखों से निकलकर मेरे देंह पर चिपक गई हो। मैं अपने देंह पर चिपकी ममता को महसूस करता हूं। ममता रूपी प्रेम को हर बार चखता हूं। उस चखे हुए प्रेम को जीवन में सजाने का प्रयास करता हूं। सजाया हुआ प्रेम लंबे समय तक हमें सजीव रखता है।
इस महिने जब लखनऊ के कार्यक्रम में मुलाकात हुई तो दूर से हीं देखकर मैं उत्साह से भर गया। उम्र की थकान ने कुछ देर पहले हुई मुलाकात को धूमिल किया तो आजी से दोबारा मेरे बारे में पूछा। मैं कुछ हीं समय में दूसरी बार इनके समक्ष उपस्थित था। मैं वापस देंह पर अजीब सा सुख महसूस कर रहा था।
मिठी मुस्कान के साथ मैंने विदा लिया। कुछ समय बाद अचानक से नए दौर के गानों पर इन्हें नृत्य करते देखा तो माॅरी की याद आ गई। नए संगीत पर पुराने लगभग ढ़़ह चुके बुजुर्ग का हर सुर के साथ अंग का खुबसूरत संचालन अविश्वसनीय था। बाकी सभी के नृत्य में झूठापन, अच्छे दिखने का लालच, कैमरे की तलाश थी लेकिन श्रद्धा सिर्फ यहां फूट रही थी। सभी प्रकार के द्वंद्व से मुक्त। दर्शक से अंजान। देखे जाने के भाव से निश्चिंत। कहे जाने के वाक्य से अंजान।
उत्साह और वात्सल्य का अनोखा संगम।
नए और पुराने का अटूट मेल।
ट्यूसडे विथ माॅरी की महिला संस्करण।