सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
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Tuesday, July 16, 2024

मैं कुछ बन जाऊंगा पेड़ या फसल- पीयूष चतुर्वेदी

जहां देखो वहां किसान।
कहीं ठगता किसान।
कहीं जलता किसान।
कहीं मरता किसान।
कहीं अमीर किसान।
कहीं गरीब किसान।
कहीं मस्ती में किसान।
कहीं परेशान किसान।
कहीं जनता किसान।
कहीं नेता किसान। 
कहीं हिन्दू किसान।
कहीं मुस्लिम किसान।
कहीं सिख किसान।
जहां देखो वहां किसान।
कहीं अच्छा किसान।
कहीं बुरा किसान।
कहीं ज़मीनी किसान।
कहीं भाड़े का किसान।
कहीं आतंकी किसान।
कहीं देशभक्त किसान।
कहीं हमारे किसान।
कहीं तुम्हारे किसान।
कहीं मैं किसान।
कहीं वो किसान। 
कहीं हम सब किसान।
फिर भी परेशान क्यों किसान?



हां, कौन है?

जी, मैं हूं। 

मैं क्या कोई नाम होता है?

नहीं,मेरे नाम से आप मुझे नहीं पहचान पाएंगे।

तो अपना काम बताओ। 

जी, मैं किसान हूं और खेती करता हूं। 

तो जाओ मेहनत करो। यहां क्या करने आए हो? 

हमें दिल्ली में जाना है। 

दिल्ली में कौन सी खेती करनी है भाई? 

जी खेती नहीं करनी वो संसद में बैठे देश के मुखियाओं से बातचीत करनी है। 

अरे! तुम किसान हो भाई‌। तुम वहां जाकर क्या करोगे? 

बस अपने स्थाई दुख को थोड़ा सहलाना है। कोई उस दुख पर ऊंगली रखकर साल दो साल के लिए दवाई लगा दे। 

अरे यहां कोई डाक्टर थोड़ी बैठा है।

हमें डाक्टर से नहीं सेवक से मिलना है।

अरे! भाई सेवक संसद में नहीं रहते। और फिर तुम तो किसान हो। 
कोई अपराधी थोड़ी। 
यहां बलात्कारी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा लगाते हैं। 
उपद्रवी, कानून बनाते हैं। 
भ्रष्टाचारी, ईमानदार नीतियों को लागू करते हैं। 
अपराधी, सुशासन की बात करते हैं। 
तुम तो किसान हो तुम क्या करते हो? 

फिर सेवक कहां रहते हैं? 
जी, मैं खेती करता हूं। खेत जोतता हूं। बीज बोता हूं। फसल उगाता हूं। उसे काटता हूं। कुछ लोग कहते हैं कि मैं देश का पेट भरता हूं। और जब काम से थक जाता हूं तो गहरी नींद सो जाता हूं। किसी पेड़ पर या पंखे पर झूलता हुआ।

सेवक वादों में रहते हैं। तुम्हारे वोट पाते हीं वो मालिक हो जाते हैं। और दिल्ली आने के लिए इतना काफी नहीं है। अभी तुम बहुत कमजोर हो। गुण रहित हो और ईमानदार भी। तुम्हारे भ्रषटता का स्तर सूक्ष्म है। तुममें दिल्ली आने जैसे कोई गुण नहीं। 

तो मैं क्या करूं? 

वहीं जो अब तक करते आए हो।
आसमान ताको।
धरती चीरो। 
देह थकाओ और गहरी नींद में सो जाओ। 

देह को तो मैं बहुत वर्षों से सुलाता आया हूं। लेकिन आत्मा इस बार उत्तर मांग रही है। 

किसी के पास कोई जबाब नहीं। 
हां वादा जरूर है। तुम उस वादे के विश्वास में कुछ वर्ष और मर सकते हो। 

मैं किसान हूं। मैं मरूंगा नहीं। 
मैं कुछ बन जाऊंगा। 
मिट्टी
हवा
घास
पौधा
पेड़
या फसल।



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