सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
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Thursday, June 18, 2020

हम

हम सभी के भीतर एक हम छुपा होता है। वो हम तब मैं तक जा सिमटता है जब सफलता हमारी सरलता को नोच खाती है। हमारा संकल्प जब शिष्टाचार से जीत जाता है। भीतर बहने वाले प्यार नाम की नदी को हम बांध देते हैं। उसके बंधते हीं हम मैं तक सिमट जाते हैं। भीतर का हम वाला हिस्सा अहम का रुप ले बैठता है। इसका अहसास तब होता है जब अहम को तोड़ने वाला कोई हमें प्यार करने सिखाता है। 


-पीयूष चतुर्वेदी

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