भेंट, मुलाकात मात्र एक माध्यम है हमारी उपस्थित का। हमारी उपलब्धियों का। मैं जब भी बाबा को देखता हूं मुझे उनकी लकीरें नजर आती हैं। लकीरों में संघर्ष नजर आता है। बाबा की लकीरें स्वयं में कहानियां कहती हैं। जानकारियों का गुच्छा होंठों पर कंपकंपाता रहता है। लकीरों आज भी कुछ नया करने के लिए भागती हैं। उम्र से दौड़ लगाती है। उम्र हर रोज हारता है लकीरें माथे पर थकान लिए उभर जाती हैं। यहीं थकान हर पल उनकी महानता की कहानी कहता है।
-पीयूष चतुर्वेदी