सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Thursday, April 16, 2020

कुआं

अरविंद बाबा का कूआं। पर गांव में आज भी लोग कहते हैं अरबिन बाबू के कुइआं। वो कुआं जो कभी एकमात्र सहारा था प्यास बुझाने का आस-पास के २० घरों का। मां, दादी, बहनें सभी दो मिट्टी के घड़े लेकर जातीं।‌ एक घड़ा कमर पर और दूसरा सिर पर। पानी के लिए एक लंबा इंतजार होता था। पर शांति थी, उस शांति में सभी अपने सुख-दुख की बातें करते थे। उन बातों में असल प्रेम दिखता था। लोग एक दूसरे को समझते थे। सभी हर एक की कहानी जानते थे। कभी किसी के चेहरे की आस-पास की चोट, लोगों का साथ पाकर कम हो जाती था। सच कहूं तो सभी एक दूसरे से पानी की तरह जुड़े हुए थे। जैसे पानी का कोई विरोध नहीं होता। हर आने वाला कल पानी के साथ स्वच्छ होता गया।‌ अलग हीं मिठास थी इस पानी की। आज यह बंद हैं। लोगों का मिलना-जुलना भी बंद‌ है। पानी का साधन अब सभी के पास है पर उस पानी में मिठास नहीं है। बोरी भर शक्कर घोलने पर भी नहीं।‌                



 -पीयूष चतुर्वेदीHttps://itspc1.blogspot.com

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