बचपन इसका सभी बच्चों की तरह आम था। कुछ दिनों बाद साथी बच्चों के लिए खुशी का कारण बना। एक समय बाद यह निश्चित हुआ कि रामदास बाकी बच्चों से अलग है अब यहां से बाकी बच्चों की खुशी रामदास के लिए चिंता का कारण बन गया। यह पहला मौका नहीं, समाज हमेशा से विकृतियों के साथ जन्में लोगों पर हंसता आया है और हमेशा उन्हें अपनाने से घबराता आया है। पर एक सत्य यह भी है ऐसे लोग हर प्रकार से हमसे अलग होते हैं। लेकिन उनके अलग को पहचानने से पहले हीं हम उन्हें खुद से अलग कर देते हैैं। हमें जरूरत है हर किसी को उसके सच के साथ अपनाने की। -पीयूष चतुर्वेदीHttps://itspc1.blogspot.com
मेरा सारा जीया हुआ अतीत अब भी मुझमें उतना ही व्यापक है जितना मुझमें मेरी श्वास। कभी-कभी लगता है अतीत वह पेड़ है जिससे मैं सांस ले रहा हूं। क्योंकि हर रात जब मेरा अतीत सो रहा होता है मेरा दम घुटता है। इसलिए हर रोज वर्तमान के दरवाजे पर खड़े होकर मैं अतीत की खिड़की में झांकता हूं। जहां मेरी सांसे तेज, लंबी और गहरी होती हैं।
सफरनामा
- Piyush Chaturvedi
- Kanpur, Uttar Pradesh , India
- मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।
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Tuesday, April 14, 2020
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