सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Friday, May 31, 2019

तुमसे हूं

तुम में हूं, तुमसे हूं, तुम्हारा हूं,तुम्हारे जैसा हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। तुम्हारी अच्छाईयों में, तुम्हारे बुराईयों में, तुम्हारी तनहाईयों में मैं हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। तुम्हारी बातों में ख्वाबों में, ख्यालों में रात के अंधेरे से दिन के उजाले में हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। तुम्हारे रूप में, तुम्हारे श्रंगार में, तुम्हारे जीत और हार में हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। तुम्हारे दिल का कोना जो आज मेरे लिए नफरत से भरा है उन कोनों को छोड़ अपने दिल में देखना वहां मैं ही हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। तुम्हारी सोच में हूं,तुम्हें सोच के हूं, खुद से ज्यादा तुम में हूं, तुम मानों या ना मानों पर मैं हूं। 

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