बात बहुत पुरानी है।
जिसकी शुरुआत शाम की हल्की रोशनी और तुम्हारे चेहरे की अनमोल मुस्कुराहट से हुई थी जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था। हाँ वो मैं हीं था।
फिर हर रोज तुम मेरी नजरों में थी मेरा दिल तुम्हारे ख्यालों में था। बिना नाम जानें हीं तुम्हारा तुमसे प्यार कर बैठा था। हाँ वो मैं हीं था।
दिन की शुरुआत सूरज की रोशनी से कहीं ज्यादा तुम्हारे ख्वाबों से होती थी और भरी दुपहरी में सूरज के गुस्से का सामना कर मैं तुम्हारा इंतजार करता था। हाँ वो मैं हीं था।
फिर तुम्हारे नाम से जान पहचान हुई तुम फिर भी मुझसे अंजान थी पर मेरा दिल ये मान बैठा था कि मुझे तुमसे कुछ तो हैै। हाँ वो मैं हीं था।
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