सफरनामा

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Kanpur, Uttar Pradesh , India
मुझे पता है गांव कभी शहर नहीं हो सकता और शहर कभी गांव। गांव को शहर बनाने के लिए लोगों को गांव की हत्या करनी पड़ेगी और शहर को गांव बनाने के लिए शहर को इंसानों की हत्या। मुझे अक्सर लगता है मैं बचपन में गांव को मारकर शहर में बसा था। और शहर मुझे मारे इससे पहले मैं भोर की पहली ट्रेन पकड़ बूढ़ा हुआ गांव में वापिस बस जाउंगा।

Monday, February 3, 2020

घटना

हर रोज कुछ अलग ही घटीत होता है मेरे आस-पास, नए लोगों से मिलने के साथ, नई चिजें देखने के बाद, कुछ सुनकर कुछ महसूस करने के बाद ऐसा लगता है मानो कोई मुझे बदलना चाह रहा हो। बिल्कुल वैसे जैसे खुद की सुविधा के अनुसार शदियों से लोग बदलते आ रहें हैं। पर मेरे भितर का जडत्व हर बार इसका विरोध करता है। अक्सर खुद को स्वयं में कम होता हुआ महसूस किया है मैंने ,पर जडत्व अब भी है। पर कब तक? लगता है कोई मुझे बांधना चाहता है जैसे किसी ने बहती हुई पावन नदि की चंचलता को बांध बनाकर रोक दिया हो।मुझे उस रास्ते पर चलने को मजबूर कर रहा हो जिनमें भटकाव हो जिनकी शुरुआत तो पता है पर अंत नहीं वो बस बनती गई है वह बस बनती गई है किसी न किसी के पैरों के निशान से।मानों कोई मेरे जीवन जीने का तरीका बदलना चाहता हो जैसे लोगों ने प्रकृति को बदल दिया। पर जडत्व अब तक मुझे बांधे हुए है। पर एक डर सा है बदलने का। खुद को खोने का। और मैं खुद को स्वयं में पाना चाहता हूं। एक आदत सी है मुझको खुद से बात करने की। इसलिए स्वयं के जडत्व को और मजबूत करना चाहता हूं।

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